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________________ निर्जराधिकार चिप का जो प्रत्यक्ष अनुभव करता है वह साश्वत है, मानगुण मात्र ही उमका शरीर है। वह सात प्रकार को शका व भय मे किस प्रकार छूटता है ? तो कहते है कि सम्यग्दष्टि के स्वभाव में हो भय से रहितपना है, उसी के द्वारा उसका भय छूटता है। भावा--सम्यग्दृष्टि जीव के निर्भय स्वभाव के कारग महज ही अनेक प्रकार के परीषह-उपसर्ग का भय नही है। वह सहज ही निर्भय है। इसलिए सम्यग्दष्टि जीव के कम-बन्ध नहीं है, निजंग है ॥२२॥ मया -जमकोसोभातासाता है प्रसाताकर्म, नाके उचं मूरब न माहम गहत है। मुरगनिवासो भूमिवासो प्रो पातालबासी, मबहोको तन मन कंपत रहत है॥ उको उजागे म्यागेखिये सपत भैसे, बोलत निशंक भयो मानन लहत है। महज सुवोर जाको मास्वत शरीर ऐसो, मानी जोब पारज प्राचारज कहत है॥ दोहा-नभव भय परलोक भय, मरण बेदना मात । अनरमा प्रनगुप्त भय, अकस्मात भय सात ॥२२॥ शार्दूलविक्रीडित लोकः शाश्वत एक एप सकलव्यक्तो विविक्तात्मनः विचल्लोकं स्वयमेव केवलमयं पल्लोफयत्येककः । लोको पन्न तवापरस्तरपरस्तस्यास्ति तीः कुतो निःशः सततं स्वयं स सहजं जानं सदा विमति ॥२३॥ सम्यग्दृष्टि जीव स्वभाव ही मे शुद्ध चतन्य वस्तु का निरन्तर रूप से-अतोन, अनागत, वर्तमान काल में---अनुभव करता है, आम्वादन, करता है। अपने आप हो अपने आप का अनुभव करता है। सम्यग्दृष्टि जीव सप्तभय में रहिन है। ऐसे सम्यक्ष्टि जीव को इहलोक भय-परलोक भय कहाँ मे होगा, अर्थात नहीं होता है। हे जीव, जो चिप मात्र है वही नेग लोक है । और जो कुछ भी इहलोक-परलोक-पर्यायरूप है वह नेरा म्वरूप नहीं है। इहलोक अर्थात् वर्तमान पर्याय में यह चिन्ता कि जो भोग मामग्री प्राप्त हुई
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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