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समयसार कलर टीका (धारण करता) है । उस अवलम्बन को वचन द्वार के द्वारा कहने में समर्थ नहीं है इसलिए कह नहीं सकता। उस शुद्ध ज्ञान प्रकाश का प्रकाश अवि. नाशी है, उमने राग-दंष-मोह आदि जितने भी असंख्यातलोक मात्र अशुद्ध परिणाम हैं जिनकी मब प्रकार आम्रव नाम संज्ञा है, उनका तत्काल विनाश किया है। भावार्थ-जीव के अशुद्ध रागादि परिणाम पर ही सच्चा मालव पना घटिन होता है जिनका निमित्त पाकर कर्मरूप आस्रव होता है। पुद्गल की वगंणाय नो अशुद्ध परिणाम के आधीन हैं इसलिए उनकी क्या बात रही। वह तो परिणाम पद होते ही मिट जाती है ॥ शुद्धज्ञान तो अपने चिद्रप गुण के द्वारा जितनी भी अतीन-अनागत-वर्तमान पर्याय सहित शेय वस्तुएं है उन मवको अपने में प्रतिबिम्बित करता है। उसकी अनन्त शक्ति अनन्त ज्ञेय पदार्थों में भी अनन्नानन्तगुण है। भावार्थ-द्रव्य अनन्त हैं। उनसे उनकी पर्याय अनन्तगणी हैं। उन समम्न शंय मे ज्ञान को शक्ति अनन्तगुणो है। ऐसा द्रव्य का स्वभाव है । सकल कर्मों के क्षय होने पर शुद्ध ज्ञान जैसा उपजा वैसा ही अननकाल तक रहता है अन्य रूप नहीं होता। उस शुद्ध मान के मुखरूप परिणमन करने का त्रिलोक में कोई दृष्टान्त नहीं है । ऐसा शुद्ध ज्ञान प्रकाश प्रगट हुआ ॥१२॥ संबंया-जाके परकाश में न दीसे राग-द्वेष-मोह,
प्रास्त्रव मिटत नहिं बंध को दरस है। तिहुं काल जामें प्रतिविम्बित अनन्तरूप, प्रापहुं प्रनन्त सत्ताऽनन्त तें सरस है।
भावभूतमान परमार्थ जो विचारि वस्तु, मनभी करे न जहां वारणी को परस है। प्रतुल अलग प्रविचल अविनाशी पाम, चिदानन्द नाम ऐसो सम्यक् बरस है ॥१२॥
॥ इति पंचमो अध्यायः ॥