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________________ मूल शब्द अहभूमि अडवाय अक्खोड अगंधन (सर्प) अचियत्त अज्झोयर अणा इष्ण अणाइन्न अणिमिस हि अणुजाण अनुस्सिन अणोहाइव अन्नायउ छ अपठि अरइ पारिभाषिक शब्द कोश स्थल ५।१।२४ सू० ४।११ " ४।१६ २६ ५।१।१७ ५१/५२ ३|१|१० ७२ ५।१।७३ १०।१३ ६ । १४ ५२ २१ च० १०१ हिन्दी अर्थ वह स्थान जहां पर भिक्षुओं का जाना मना हो । नाश करना, वियुक्त करना । थोड़ा या एक बार झाड़ना । वह सांप जो वमन किये (काटे गये) विष को मंत्रवादी द्वारा प्रेरित किये जाने पर भी वापिस नहीं चुसता, भले हो अग्नि प्रवेश करना पड़े । अप्रीतिकर या अप्रतीतिकर वह भोजन जो गृहस्थ द्वारा मुनि के निमित्त अधिक पकावे | साधुओं के योग्य नहीं करने वाले कार्यं । जिसका आचरण नहीं किया गया । अननास फल । छल - रहित अनुमोदन करना । अग्नि द्वारा नहीं उबाला गया । संयम से बाहर नहीं गया हुआ । अपना परिचय दिये बिना अपरिचित घरों से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा लेने वाला । | ६|३|४ १०।१६ ५।१।१३ उत्सुकता - रहित । ८।३७ अरति मोहनीय के उदय से उत्पन्न होने वाली मानसिक अप्रीति । २६७
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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