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________________ उत्तमसंबन 0११ आप यह भी कह सकते हैं - इन्द्रियाँ तो हमारे आनन्द और ज्ञान में महायक है । वे तो हमें पंचेन्द्रियों के भोगों के प्रानन्द लेने में महायता करती हैं, पदार्थों को जानने में भी महायता करती हैं। महायकों को शत्रु क्यों कहते हो? महायक तो मित्र होते हैं, शत्रु नही। पर पाप यह क्यों भूल जाते हैं कि ज्ञान और प्रानन्द नो पात्मा का स्वभाव है। स्वभाव में पर की अपेक्षा नहीं होती। अतीन्द्रियअानन्द और अतीन्द्रियज्ञान को किसी पर' की सहायता की अावश्यकता नहीं है। यद्यपि इन्द्रियसुख और इन्द्रियनान में इन्द्रियाँ निमित्त होती है, नथापि इन्द्रियसुख मुख है ही नहीं ! वह मुखाभास है. सुख-मा प्रतीत होना है। पर वस्तुत. मुख नहीं, द ग्व ही है, पापबंध का कारण होने मे आगामी दु.ख का भी कारगा है। इसीप्रकार इन्द्रियाँ रूप-रसगन्ध-सार्ण और शब्द की ग्राहक होने में मात्र जड़ को जानने में ही निमिन हैं, ग्रात्मा को जानने में वे माक्षात निमिन भी नहीं है। विषयों में उलझाने में निमित्त होने से इन्द्रियां संयम में बाधक ही है, माधक नहीं। पंचन्द्रियों के जीतने के प्रसंग में भी मामान्यजनों का ध्यान इन्द्रियों के भोगपक्ष की ओर ही जाता है, ज्ञानपक्ष की ओर कोई ध्यान ही नहीं देता । इन्द्रियसुख को न्यागने की बात तो सभी करते हैं; पर इन्द्रियज्ञान भी हेय है, आत्महित के लिए अर्थात् अतीन्द्रियसुख मौर अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति के लिए इन्द्रियज्ञान की भी उपेक्षा अावश्यक है - इमे बहुत कम लोग जानते हैं। जब इन्द्रियमुख भोगते-भोगते अतीन्द्रियमुख प्राप्त नही किया जा सकता तब इन्द्रियज्ञान के माध्यम से प्रतीन्द्रियज्ञान की प्राप्ति कैसे होगी ? आत्मा के अनुभव के लिए जिसप्रकार इन्द्रियमुख त्याज्य है; उसीप्रकार अतीन्द्रियज्ञान की प्राप्ति के लिए इन्द्रियज्ञान से भी विगम लेना होगा। प्रवचनसार में प्राचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं : अत्थि अमुत्तं मुत्तं अदिदियं इंदियं च प्रत्येसु । गाणं च तहा सोक्खं जं तेसु परं च तं णेयं ॥५३॥ जिसप्रकार ज्ञान मूर्त-अमूर्त और इन्द्रिय-प्रतीन्द्रिय होता है; उसीप्रकार सुख भी अमूर्त-मूर्त और इन्द्रिय-प्रतीन्द्रिय होता है । इनमें
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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