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६४ धर्म के दशलक्षरण
नहीं और दिखा दिया; है न कमाल ! पर मैं कहता हूँ - कमाल है या धोखा | ज्ञानी तो उसे कहते हैं - जो है उसे दिखाए; जो नहीं है उसे बताने वाला तो धोखेबाज ही हो सकता है । पर लोग सत्य के प्रति उत्साहित नहीं होते, महिमावंत नहीं होते; धोखे से प्रभावित होते हैं । कहते हैं सत्य में क्या है ? वह तो है ही, उसे दिखाने में क्या रखा है ? कमाल तो जो नहीं है उसे दिखा देने में है ।
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सत्य के प्रति बहुमान वालों को सत्य प्राप्त होना कठिन ही नहीं, श्रमम्भव है । सत्य - सत्य की रुचि, महिमा, लगन वालों को ही प्राप्त होता है ।
ग्राम - सत्य की तीव्र रुचि जागृत हो, उसकी महिमा ग्रावे, उसे प्राप्त करने की तीव्रतम लगन लगे, उसे प्राप्त करने का ग्रन्तरोन्मुखी पुरुषार्थ जगे और सत्य की प्राप्ति न हो; यह सम्भव नहीं है । सत्य के खोजी को सत्य प्राप्त होता ही है ।
आत्मवस्तु के त्रैकालिक सत्यस्वरूप के ग्राश्रय से उत्पन्न होने वाला वीतरागपरिगातिरूप उत्तमसत्यधर्म जन-जन में प्रकट हो, ऐसी पवित्र भावना के साथ विराम लेता हूँ ।