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उत्तमसत्य D३ सम्बन्ध में समझौता करने वाले हम होते भी कौन हैं ? समझौते में दोनों पक्षों को झुकना पड़ता है। समझोते का प्राधार सत्य नहीं, शक्ति होती है। समझौते में सत्यवादी की बात नहीं, शक्तिशाली की बात मानी जाती है।
अग्नि कैमी है -ठंडी या गर्म ? यह बात जानने की तो हो सकती है, पर इसमें समझौते की क्या बात है ? यदि कोई कहे कि अग्नि ठंडी है और कोई कहे गर्म है, इसमें क्या समझौता हो सकता है ? पचास प्रतिशत ठंडी और पचास प्रतिशत गर्म मानी जाए क्या ? यदि न मानें तो समझौता नहीं होगा, मानलें तो सत्य नहीं रहता।
वस्तु के सत्यस्वरूप को पागका समझौता स्वीकार भी कहाँ है ? यदि आपने सर्वसम्मति से भी अग्नि को ठंडा मान लिया तो क्या अग्नि ठंडी हो जाएगी ? नहीं, कदापि नही। अग्नि तो जैमी है वैसी ही रहेगी।
अग्नि कैमी है ? इसके बारे में पचायत बैठाने के बजाय कर देखना सही रास्ता है। उसीप्रकार सत्य वस्नुतत्त्व के बारे में पंचायत बैठाने के बजाय आत्मानुभव करना मही मार्ग है।
वस्तु के स्वरूप की मत्य समझ का नाम धर्म है। सत्य को समझौते की नही, समझने की अावश्यकता है। गन्य प्रौर शान्ति समझ से मिलती है, समझौते से नही ।
_इस चमत्कारप्रिय जगत में सत्य की आवश्यकता भी किसे है ? उसे प्राप्त करने की एकमात्र तमन्ना किसे है, तड़प किसे है ? उमकी कीमत भी कौन करता है ? यहा नो चमत्कार को नमस्कार है।
एक माधारगा-मा जादूगर चौगहे पर खड़ा होकर लोगों को भूठा आम बनाकर मैकड़ों रुपये बटोर लेता है. जबकि एक कृपक को सच्चे आम के पचास पैसे प्राप्त करना कठिन होना है। वास्तविक आम खरीदते गमय लोग हजार मीन-मेख निकालते हैं।
जादूगर तो मात्र आम दिखाना है, देना नही; पर कृषक देता भी है। जादूगर के पाम ग्राम है ही नहीं, वह दे भी कहाँ से ? वह तो धोखा देता है, हाथ की सफाई बताता है, हमारी नज़र बंद करता है । पर इम जगत में धोखा देने वाला आदर पाना है, धन पाता है। हमें उमकी महिमा पाती है, जो हमारी नज़र बन्द करता है। उसकी नहीं जो खोलता है। लोग कहते हैं क्या ग़ज़ब किया, माम था ही