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श्री टोडरमल ग्रन्थमाला से अभी तक प्रायः आपके ही सम्पादन मे ग्यारह लाख की संख्या में ५० पुष्प प्रकाशित हो चुके है। पण्डित टोडरमल म्मारक ट्रस्ट मे धार्मिक माहित्य का विक्री विभाग भी चलता है, जो प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ लाख रुपये का धार्मिक साहित्य जन-जन तक पहुँचाता है ।
भारतवर्षीय वीतराग-विज्ञान पाठशाला ममिनि के भी आप मन्त्री है । इम पाठशाला समिति के प्रयत्नों से देश में ३३२ वीतराग-विज्ञान पाठशालाएँ नवीन प्रारम्भ हुई है, जिनमें हजारों छात्र धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं।
इनके अतिरिक्त आपकं निरन्तर होनेवाले प्रभावशाली प्रवचनों से जयपुर ही नहीं, सम्पूर्ण भारतवर्ष लाभ उठाता है, जिससे तत्त्वप्रचार को अभूतपूर्व गति मिलती है।
पूज्य गुरुदेवश्री के पुण्यप्रताप में चलनेवाली अन्य गतिविधियों में भी आपका बौद्धिक महयोग निरन्तर होता रहता है।
साधारण जनता के साथ-साथ विद्वद्-ममाज ने भी इम कृति को दिल खोलकर सराहा है। समाजमान्य विद्धानो की कुछ मम्मतियाँ पुस्तक के अन्न में दी गई है। विश्वास नही था कि इतनी अल्प अवधि में ही इस पुस्तक का चतुर्थ संस्करण प्रकाशित हो जावेगा।
यद्यपि यह आत्मधर्म में प्रकाशित लेखो का ही पुस्तकाकार प्रकाशन है; तथापि इसमे आवश्यक सशोधन, परिवर्तन एवं परिवर्द्धन भी किये गये है।
अभी तक के इसके दो संस्करण श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट मानगढ की ओर जयपुर प्रिण्टर्स, जयपुर द्वारा मुद्रित हुये है। तृतीय एव प्रस्तुत चतुर्थ संस्करण पण्डित टोडरमल स्मारक, जयपुर में प्रकाशित किए गये है।
इस चतुर्थ मम्करगग की कीमत कम करने हेतु मुजफ्फरनगर में हुई पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर गुप्तदान मे २००० रुपयो की
ण प्राप्त हुई है, जिसके कारण कागज की इतनी महंगाई में भी पुस्तक की कीमत इतनी कम रखी जा सकी है। हम गुप्तदान में राशि प्रदान करनेवाले महानुभावो के हृदय में आभारी है।
- नेमीचन्द पाटनी १५ अगस्त, १९८३ ई.
मंत्री, पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट