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________________ ४२ ० के बसलमान मुनिराजों के भी संज्वलन सम्बन्धी मानादि की उपस्थिति रहेगी ही। मानादि कषाय छूटेगी तो भूमिकानुसार हीं; पर उनमें उपादेयबुद्धि, उन्हें अच्छा मानना तो छूटना ही चाहिए। इसके बिना तो धर्म का प्रारम्भ भी नहीं हो सकता। आश्चर्य की बात तो यह है कि हम उन्हें उपयोगी और उपादेय मानने लगे हैं। कहते हैं कि गहस्थी में थोड़ा क्रोध, मान आदि तो होना ही चाहिए, अन्यथा काम ही न चलेगा। यदि थोड़ा-बहुत भी क्रोध नहीं रहा तो फिर बच्चे भी कहना न मानेंगे । सारा अनुशासनप्रशासन समाप्त हो जायगा। थोड़ा स्वभाव तेज हो तो सब काम ठीक होता है, समय पर होता है। इसीप्रकार यदि हम बिलकुल भी मान न रखेंगे तो फिर कोई भटे के भाव भी नहीं पूछेगा । प्रान-बानशान के लिए भी थोड़ा-सा मान जरूरी है। अज्ञानी समझता है-अनुशासन-प्रशासन और मान-सम्मान क्रोध-मान के द्वारा होते हैं, जबकि इनका क्रोध-मान के साथ दूर का भी सम्बन्ध नहीं है। एक बाबाजी थे। उन्हें खांसी उठा करती थी। उनसे कहा गया कि खाँसी का इलाज करा लीजिए, क्योंकि कहावत है कि 'लड़ाई की जड़ हाँसी और रोग की जड़ खाँसी । वे कहने लगे-भाई ! भरे-पूरे घर में इतनी खांसी तो चाहिए। क्यों? ऐसा पूछने पर कहने लगेतुम समझते तो हो नहीं। बहू-बेटियों वाला बड़ा घर है । घर में खांसते-खखारते जामो तो सब सावधान हो जाते हैं, इसमें उनकी और हमारी दोनों की इज्जत बनी रहती है। जब उनसे कहा गया कि खांसी का तो इलाज करवा लीजिए, बहू-बेटियों के लिए नकली खांस लिया करना। तब तुनक कर बोलेनकली क्यों खांसू जब असली ही है तो; हम नकली काम नहीं करते, नकली वे करें जिनके असली न हो। आवश्यकतावश खांसना-खसारना अलग बात है और खांसी को ही उपयोगी और उपादेय मानना अलग बात । जिसने खांसी को ही उपयोगी और उपादेय मान लिया है, उसे कालान्तर में निश्चितरूप से तपेदिक होने वाला है। इसीप्रकार मानादि की चाह या मानादि का मांशिकरूप से होना अलग बात है और उन्हें उपयोगी और उपादेय मानना अलग बात । उपादेय मानने वाले को धर्म प्रकट होना भी सम्भव नहीं है।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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