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अभिमत 0 १८६ पाबाल-गोपाल की शैली में वर्णन कर समाज के सामने एक प्रमूल्य निधि प्रदान की है, जिसकी प्रतीक्षा समाज लम्बे अरसे से कर रही थी। लौकिक उदाहरण प्रस्तुत कर जटिल विषयों को सरल बनाकर उत्कण्ठासहित पाठकों को साथ ले
जाने का जो उपक्रम है, वह मुक्तकण्ठ से प्रशंसनीय है। - भरतचक्रवर्ती शास्त्री * पं० अमृतलालजी जैन, साहित्याचार्य, वाराणसी (उ० प्र०)
'धर्म के दशलक्षण' ग्रंथ को मैंने प्रथ से इति तक शब्दशः ध्यान से पढ़ा, और प्रसन्नता का अनुभव किया। विद्वान् लेखक ने प्रतिपाद्य विषय की संपुष्टि के लिए यत्र-तत्र सर्वत्र मागम के प्रमाण देकर प्रस्तुत ग्रंथ को प्रामाणिक बनाने का भरसक प्रयत्न किया है । बीच-बीच में सुन्दर युक्तियों एवं उदाहरणों के देने से प्रस्तुत ग्रंथ प्रोर भी प्राकर्षक हो गया है । बोधगम्य, सरल एवं सरस हिन्दी माध्यम से लिखा गया यह ग्रंथ साधारण पाठक को भी प्रामानी से समझ में पा जाएगा। ऐसे ग्रंथ के प्रणयन के लिए प्रणेता डॉ. भारिल्ल, जो प्रखरवक्ता, सिद्धहस्तलेखक एवं कुशल अध्यापक है; धन्यवाद एवं बधाई के पात्र हैं, और प्रकाशन संस्था भी।
. -अमृतलाल जैन • राजस्थान पत्रिका (इतवारी पत्रिका), दैनिक, जयपुर, ३ दिसम्बर १९७८
....."डॉ० हुकमचंद मारिल्ल ने पर्व के महत्त्व को मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन से छूते हुए माद्र मास में जैन समाज द्वारा दशलक्षण पर्व के वास्तविक स्वरूप को पहिचानने की ओर इंगित किया है ।"..."जैन शास्त्रों के व्याख्याता, दार्शनिक विचारक डॉ. हुकमचंद मारिल्ल द्वारा लिखी गई यह पुस्तक पठनीय, मननीय एवं धारण करने लायक है। - बिशनसिंह शेखावत * राष्ट्रदूत, दैनिक, जयपुर, २१ जनवरी १९७६
लेखक ने क्षमा, मार्दव, मार्जव, शौच, संयम, तप, त्याग, प्राकिंचन्य, ब्रह्मचर्य के उत्तरोत्तर निखार पर प्रकाश डालते हुए व्यावहारिक जीवन में इनके प्रयोगों पर जोर दिया है । जीवन के इन दश धर्मों अथवा चरित्र विकास के मार्ग में आनेवाली बाधामों को हटाने में ये लेख सहयोगी हो सकते हैं।
दश चरित्र वाले मानवीय गुणों के विकास में धार्मिक या साम्प्रदायिक रूढ़िग्रस्तता बंधन नहीं हो सकती। उदात्त चरित्र के विकास व उसके लोकव्यवहार में ढालने से समाज स्वस्थ हो सकता है। इसी दृष्टिकोण से यह पुस्तक उपयोगी है। उन लोगों के लिए भी जो धर्म प्रयवा लोक-परलोक में अधिक प्रास्थावान नहीं हैं, यह पुस्तक चारित्रिक गुण विकास दृष्टिकोण से तो लाभदायी सिद्ध हो सकती है।
पुस्तक उन लोगों को अवश्य प्राकर्षित करेगी जो इस दौड़-धूप वाली दुनिया से निरत होने व शुद्ध चरित्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निबाहना चाहते हैं।