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________________ १६.०धर्म के दशलक्षण सम्यग्ज्ञान एवं प्रात्मलीनतारूप सम्यक्चारित्र अर्थात् ब्रह्मचर्य सैनी पंचेंद्रिय को ही होता है ? इसका आशय यह नहीं कि प्रात्मज्ञान के लिये इन्द्रियों की आवश्यकता है, पर यह है कि ज्ञान का इतना विकास प्रावश्यक है कि जितना सैनी पंचेन्द्रियों के होता है । यह तो ज्ञान के विकास का नाप है। यद्यपि यह पूर्णतः सत्य है कि सैनी पंचेन्द्रिय जीवों को ही धर्म का प्रारम्भ होता है, तथापि यह भी पूर्णतः सत्य है कि इन्द्रियों से नहीं; इन्द्रियों के जीतने से, उनके माध्यम से काम लेना बंद करने पर धर्म का प्रारंभ होता है। दूसरे जब यह प्रात्मा प्रात्मामें लीन नहीं होगा तब किसी न किसी इन्द्रिय के विषय में लीन होगा; पर पांचों इन्द्रियों के विषय में भी यह एक साथ लीन नहीं हो सकता, एक समय में उनमें से किसी एक में लीन होगा। इसीप्रकार पाँचों इन्द्रियों के विषयों को एक साथ जान भी नहीं सकता; क्योंकि इन्द्रियज्ञान की प्रवृत्ति क्रमशः ही होती है, युगपत् नहीं । चाहे इन्द्रियों का भोगपक्ष हो या ज्ञानपक्षदोनों में क्रम पड़ता है। जब हम ध्यान से कोई वस्तु देख रहे हों तो कुछ सुनाई नहीं पड़ता। इसीप्रकार यदि ध्यान से सुन रहे हों तो कुछ दिखाई नहीं देता। पर इस चंचल उपयोग का परिवर्तन इतनी शीघ्रता से होता है कि हमें लगता है हम एक साथ देख - सुन रहे हैं, पर ऐसा होता नहीं। अब जिसके पाँच इन्द्रियाँ हैं, वह यदि प्रात्मा में उपयोग को नहीं लगाता है तो उसका उपयोग पाँचों इन्द्रियों के विषयों में बट जावेगा; पर जिसके चार ही इन्द्रियाँ हैं उसका उपयोग चार इन्द्रियों के विषयों में ही वटेगा । इसप्रकार तीन-इन्द्रिय जीव का तीन इन्द्रियों में और दो-इन्द्रिय जीव का दो इन्द्रियों में बटेगा। पर एक-इन्द्रिय जीव का उपयोग एवं भोग बटेगा ही नहीं, स्पर्शन-इन्द्रिय के विषय में ही अबाधरूप से उलझा रहेगा। इसतरह जव उपयोग आत्मा में नहीं रहता है तव इन्द्रियों के विषयों में बट जाता है। प्रात्मा तो एक ही है, उपयोग का उसमें रहने पर बटने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जब वह सैनी पंचेन्द्रिय हो जाता है तब बहिर्मुखी उपयोग पंचेन्द्रियों के विषयों में बट जाने से कमजोर हो जाता है।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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