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१३० 0 धर्म के बरालक्षण नहीं लूंगा - इसप्रकार का त्याग किया जाता है । वस्तुतः यह उस वस्तु का त्याग नहीं, उसके प्रति होने वाले या सम्भवित राग का त्याग है ।
लखपति अधिक से अधिक लाख का ही दान दे सकता है, पर त्याग तो तीन लोक की सम्पत्ति का भी हो सकता है। परिग्रहपरिमारणव्रत में एक निश्चित सीमा तक परिग्रह रख कर और समस्त परिग्रह का त्याग किया जाता है। वह सीमा-अपने पास है उससे भी बड़ी हो सकती है। जैसे-जिसके पास दस हजार का परिग्रह है, वह एक लाख का भी परिग्रहपरिमारण ले सकता है। ऐसा होने पर भी वह त्यागी है; पर अपने पास रखने की कोई सीमा निर्धारित किये बिना करोड़ों का भी दान दे तो भी त्यागी नहीं माना जायगा ।
दान कमाई पर प्रतिबंध नहीं लगाता, आप चाहे जितना कमायो; पर त्याग में भले ही हम कुछ न दें, कुछ न छोड़े; पर वह कमाई को सीमित करता है, उस पर प्रतिबंध लगाता है।
दान में यह देखा जाता है कि कितना दिया, यह नहीं देखा जाता कि उसने अपने पास कितना रखा है। जबकि त्याग में यह नहीं देखा जाता कि कितना दिया है या छोड़ा है, बल्कि यह देखा जाता है कि उसने अपने पास कितना रखा या रखने का निश्चय किया है, बाकी सबका त्याग ही है। यदि त्याग में कितना छोड़ा देखा जाना होता तो फिर चक्रवर्ती पद छोड़कर मुनि बनने वाले व्यक्ति सबसे बड़े त्यागी माने जाते; किन्तु नग्नदिगम्बर भावलिंगी सन्त अपनी वीतरागपरिणतिरूप त्याग से छोटे-बड़े माने जाते हैं - इससे नहीं कि वे कितना धन, राज-पाट, स्त्री-पुत्रादि छोड़ के आये हैं । यदि ऐमा होता तो फिर भरत चक्रवर्ती बड़े त्यागी एवं भगवान महावीर छोटे त्यागी माने जाते। क्योंकि भरतादि चक्रवर्तियों ने तो छयानवे हजार पत्नियों और छहखण्ड की विभूति छोड़ी थी । महावीर के तो पत्नी थी ही नहीं, छहखण्ड का राज भी नही था, वे क्या छोड़ते ? लोक में भी बालब्रह्मचारी को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
दान में इतना देकर कितना रखा- इसका विचार नहीं किया जाता; पर त्याग में कितना रखा- यह देखा जाता है, कितना छोड़ा या दिया - यह नहीं।
दान यदि देने का नाम है तो त्याग नहीं लेने को कहते हैं । देने वाले से, नहीं लेने वाला बड़ा होता है। क्योंकि देने वाला दानी है और नहीं लेने वाला त्यागी।