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________________ उत्तमत्याग 0 ११६ को कोई कुछ समझाता है तो उसे यह सहज विकल्प आये बिना नहीं रहता कि सामने वाले की समझ में पा रहा है या नहीं। ___दानी को पैसे से मोह छूट नहीं गया है, छूट गया होता तो फिर एक लाख देकर तीन लाख कमाने को क्यों जाता? कमाने का पूगपूरा यत्न चाल है। इससे सिद्ध है कि पैसे के राग के त्याग के कारण दान नहीं दिया जा रहा है, बल्कि उपकार के भाव से दान दिया जाता है । यह बात अलग है कि उसको लोभ कषाय कुछ मन्द अवश्य हुई है, अन्यथा दान भी सम्भव न होता; पर मन्द हुई है, अभाव नहीं; अभाव होता तो त्याग होता। ___ मोह या राग के आंशिक प्रभाव में भी त्यागधर्म प्रकट होता है। यही कारण है कि त्यागी को उसका ध्यान भी नहीं पाता जिसे उसने त्यागा है । आना भी नहीं चाहिए, आवे तो त्याग कैसा ? उसे त्यागी हुई वस्तु के संभाल का भी विकल्प नहीं पाता, क्योंकि अब वह उसे अपनी मानता-जानता ही नहीं एवं उससे उसे राग भी नही रहा । उसका जो होना हो सो हो, उसे उससे क्या ? चक्रवर्ती जब राज-पाट त्याग कर नग्न दिगम्बर साधु बनते हैं तो उन्हें यह चिन्ता नहीं सताती कि इम राज का क्या होगा? इसे कौन संभालेगा? यदि हो तो फिर वे त्यागी नहीं। उससे उन्हें क्या प्रयोजन ? उन्होंने अपने हित के लिए, अपनी आत्मा की संभाल के लिए राज-पाट त्यागा है । वे यदि राज-पाट की ही चिन्ता करते रहें तो फिर उन्होंने त्यागा ही क्या है ? राज का वे करते भी क्या थे ? मात्र चिन्ना ही करते थे, सो कर ही रहे हैं। इसप्रकार हम देखते हैं कि दान में परोपकार का भाव मुख्य रहता है और त्याग में आत्महित का । यहाँ एक प्रश्न संभव है कि जो अपना है वह दूमरों को दिया नहीं जा सकता, जो दिया जा सकता है वह अपना नहीं हो सकता; 'पर' पर है, 'स्व' स्व है; स्व का दिया जाना संभव नहीं और पर का ग्रहगा संभव नहीं- एक ओर तो आप यह कहते हैं। और दूसरी मोर यह भी कहते हैं कि दान अपनी चीज का दिया जाता है - जब पर अपना है ही नहीं तब उसका क्या त्याग करना और जो दिया ही नहीं जा सकता, उसका क्या देना? इसीप्रकार जब कोई किसी का भला-बुरा कर ही नहीं सकता, सब अपने भले-बुरे के कर्ता-धर्ता स्वयं हैं, तो फिर परोपकार की बात भी कहीं ठहरती है ?
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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