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तत्वार्थ सूत्र गुनिलोपनं गुरुनिकुत्र तुली नहीं जोडनी। गुरु निकी स्तुतिनही करना। गुरुनि के गुनही प्रकाशन।। गुरुनिकुं प्रावर्ते नहीं खडा होना तीर्थक्रादिककी आज्ञाका लोपना एसमस्तनी वगोत्र के प्रावके कार है॥ सूत्रं पियोनीचैन्यिनुत्सेको चोरस्य॥१६, अपनी निदाकर, नीपरक प्रशंसा करती परकेनले गुएनिकुंप्रगट करना। ओगुएनिकुंटा कने गुणवंत निविषैविनयकरिनवीनूत्तर हनी-प्रापमैं ज्ञानादिकगुनिकी धिक्यता होतेंद्र ज्ञानादिकनिकनेमकं प्राप्त नही होतां अहंकारनंदी करना| एउच्चगोत्र के श्राश्रवको का रहे। वह रिजान कुल रुपवीर्यविज्ञ नऐश्वर्यतपश्निक रिहीन होयतात्त यापकी उच्चतानही चित्रवन करना. अन्यजीवनिकीश्रवज्ञानही करना - अन्य जीवनितै उच्चपनाच्चाडणीपरक 1 निदाग्लानिपरकी दास्पपर का अपवादका त्यागक्रन।। वद्गरिय निमाक्षर।
धनू