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तत्वार्थसूत्र तर्कधारनकरने वाले निकै पीडा अनि प्रायम जैसे दुःखप्रायतितैपरि र चूर्छ महोनां सोनूनबनी निश्रनुकं पहि। परखीवनिका उपकार केअर्थिन दिक देनोसोदान है। धर्मानुराग सहिनसंयम सोसरागसंयम है। आदिशक्ष करिसंयमासंयत्रकामनिर्जरावाननपनीग्रहणकर नो निर्दोषि क्रियाचि शेषकूंयोगऋहिण्हे,वऊरिक्रोधका अभावसोत्तोत्तिदै अग्लोनकेधक २ ऐका त्याग सो शोध है. सोनूतनती निमअनुकंपादान दिनांसंयमकाधा खोक्षमाकर नानिलेनी रहना इनितैसातावेदनी कर्मका आश्रम होई है तथाअरहंतकीपूजा करने में तत्परतावालवृद्दतपस्वीनिकावैयावृत्प करनेमेंउद्यमी रहन| सरलपरणामधारनचिनयादिक रूप रदनी एसाता वेदनीयके आश्रव के कारणहै। देवलिशुन संघधर्मदेवा वर्णवा दो दर्शनमोहस्य||२३|| केवल केकवला आहार कहना क्षुधातृषारोगा ॥३६॥