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तत्वार्थसूत्र श्ये
मनिरुदैवं नूनानयां जो अर्थ तोयरिपूएनिहीनयान्सर तिस विषैसे कल्पमान का ग्रहणकरने वालानगमनयहै। जैसैको ऊपुरुषइंधन जलादिक ग्रहणकरैथातिसकूं को ऊपूर्वप्रातुमकहाकरोदौप्तदिकही मनातयकाऊं इंतहांभानपयिष्गटनदीनया परंतु जातकाम कल्पकरिकै कार्यकरहे तन्निसंकल्प मात्र का ग्राहनिगमनयहै। शानपनी जातिका अविरोधकरिकैं पयनिकाभेदनही करिकैं समस्त का ग्रहण करनेवालासंग्रहनयहोरासंग्र इकरिकैग्रहणकीयातिसका विशेषज्ञान विनाप्रवृत्ति नही होइयातै जहां शाई दूसरनिदनही होयत होतोई व्यवहारनयपर्वतदोत्र: पूर्वापर निकालविषय नित्याभिवर्तमान विषयमात्रका ग्राहक ऋजुसुत्रनम् है । जातैः प्रतीततोवि नसिग्यावर अनागतउत्पन्ननही नयात्तातै अतीतप्रनागतमै व्यवहार का अभाव है||धा लिंगसंख्यासाधनादिककाव्यभिचारकूं दूर करनेवाला
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