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________________ शेषाणां १२शेषक दिएमनुष्परसंज्ञीतिर्यचनिमें कोई कैअवधिज्ञानदो इहै सोअवधिज्ञानावर कर्मके क्षयोपशम होइ है। ता के अभेद है। अनुगा मीशाननुगामीश वईमानाशहीयमानाद्या अव स्थिता५॥ अनवस्थित ही विपुलमतीमनः पर्यवः॥श्रुतुमतिमन पर्यय अरविपुलम तिमनपर्ययदीयप्रकारकामन:पर्ययज्ञान है।। सूत्रं ॥ विशुध्यनिपाता ज्योतद्विशेषः | २|| रु. सुमतिमनपर्यविपुलंमतिमनः यर्यय में विश्व प्र्व्यक्षेत्रकालनावकरिअधिक है। अरजुमत्तिमन:पर्ययतोछूटेड दो प्ररविपुलमत्तिमन:पर्यय केवलज्ञानदीप जावेरे ब्टैन दि॥ सूनां वि शुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेन्यौवधिमन:पर्ययोः। २५।। अवधिज्ञानतै मनपर्यय य ज्ञानकी विशुद्दिताअधिक है।। श्ररक्षेत्रअवधिज्ञानका अधिक है। स्वामी अवधिज्ञानतौ संयमी असंयमी दोऊ निकै होइ है। अरमन:पर्ययज्ञानंदेसो 我不 का
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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