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तत्वार्थसूत्र भावनितपरी सदनिका सदा सोपरी सहजय है। संसार परिभ्रमण ६५ एजो क्रियाता कात्यागसो चारित्र है एएहगुप्तिसमितिधर्मःअनुप्रेक्षायरी सहनिकाज्य चारित्रइन बनावनिक रिसंवर होई है।। त्रातपसा निर्जि रांच॥ ३॥ तप करिनिर्जरा होय है। चका र तै संवरती हो यहै। सूत्रो सम्पग्योग - हों गुप्ति | संसारसुखकी वो बार हितइंद्रियसंयमप्राण संयम के निमित्त मनवचनकाय कीक्क्रियाकारोकनां सोगुप्तिहै॥ सूत्रं ॥ ईमनायेोगादान निक्षेपोत्सर्गाः समितयः॥५॥जीव स्थानयोनि स्थान का जाननहारा
धूके सूर्य का उदय होतै नेत्रनितैच्यारिहस्तप्रमाणभूमिकुं अवलोक, नक हस्ती घोडाउंटवल गाडागाडी मनुष्य निकरिमर्दनीनू मिविग्रहार वेहारनिहारगुरुवंदनातीर्थवंदनाकै निमित्तगमनकर नासोईयासा
रिपृथ्वी कायादिक निम आरंभ कपिरणार हित कठोरता निष्टरता
दिक
॥६॥