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________________ निमैभनवचनयोग विशेषते सूक्ष्म एक क्षेत्रमें प्रवगाहक रितिष्टते समस्त आत्मप्रदेशनिमेअनंतानं तप देश है॥ नावार्थ आत्माकाश संख्यातप्रदेश क देशतिमएकएक प्रदेशविषैः अनंतानंत फलके स्कंध एक एक समयमैवं धरू पहोत्तिष्टेोघदेशवंध्॥ तेपुल स्कंध कैसे कहै।। समस्तज्ञानावरणदि मूलउत्तख्तरोत्तरप्रतिरूप होने कूं कारणहै। वटु रिके से कहै समस्त र त्रिकालवर्त्तनवनिभमनवचन कायरूपयोग के निमित्त आवें है। प्रर सूक्ष्म है इंद्रियगोचरनाही || वरित्रात्मापदेशपर कर्मके प्रदेश ती री स्कीज्यों एक क्षेत्रमैत्रवगाह करि तिष्ठैदे॥ नैसैं प्रदेश वेधकद्या/सूत्र ॥ सद्दे मुनायुन भिगोत्राणिपुर ||२५|| सातावेदनी शुन प्रयुशुभनामशुन गोत्र पुरुपपत्ति है। तिनमैत्तिर्यगायुमनुष्पायुदेवायुएतीनपुएपप्रकृति दे प्रश् नामकर्म की मनुष्यगतिदेवगतिपंचेंद्रियजातिपंचशरीरतीन अंगोपा
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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