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________________ तत्वार्थसूत्र हस्तपादादिशरीर के अवयव रमणीकसुंदर होय सोनाम है। ताकि उ ई मस्तकादिशरीर के अवयवश्यकंदर सैनोज्ञहोय सो अशुभ नामदेशना केन्दयते पृथ्वी पहाड अनि जनवज्रपटलादिकमै प्रवेश करतैनही रुकं चाला सूक्ष्मशरीर उपजै सो सूक्ष्मशरीरनाम है। जा के उदय-अन्यकूंचाधा ये कैसा शरीर उपने सो वादसारी नामदे जाके उदयप्रहार आदि पर्याप्तिपूर्ण करे सो पर्याप्तिनामहै नाके ग्ट्यतै एकहपर्याप्तिपूर्णनदी करै। अपर्याप्त अवस्थाही भरण करे सो अपर्याप्त नाम है। जा के उदय सादिक धातुउपधातु अपनेअपनस्थानविषेस्थिस्नावरूप-संगोपा गट होयसेो] स्थिरनामहै । जाकेउदयतरसादिधातुउपधातु यसअस्थिर है। जाके उदद्यतेघना सहित शरीर हो यसो प्रदिय है। जा केउदयतेघनारहितनिः पनाशरीर होय सोअनदिय है। अक्उिदय ॥ ६ ॥
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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