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________________ तत्वार्थसूत्र सनिःप्रधिगम जके भेदते दो यप्रकार है। अपशमिकक्षायिक क्षायोपश ६ | भिकने दौंती नर्षका रहे। ससंख्येयभेद है। प्रस्थान करनेवालाअर श्रान करने योग्प्पांचे भेदक्तेप्रसंख्याक्तप्रनेत्तनेद है। जैसे सम्पाद अनि निर्देशादिकञ्चपकार करिवर्ननकीया तसे ही ज्ञान चारित्रम तथा जी जीवादितत्त्वनिपरमागमके अनुसार करियुक्तकरनेंजोंग्प होने र जानने का उपाय क है है॥ सूत्रं ॥ सत्त्वात्क्षे त्रस्परनिकालांतर नावाल्पव ऊत्वैश्व|||सत्क दिएअस्तित्व। संख्या कहिएनेदनिकी गणना। क्षेत्र कहि एवर्तमान काल में निवास स्पर्शनकहिएत्रिकालगोश्वरनिवास कालक दिएसमय की मर्यादि|| अंतरक हिए विरहकाला नाव कहिए क्षयोपशमा दिक अल्पवचकदिएपरस्परकी अपेक्षाकरिदीनअधिक पग इनि टनिकरिकैइ सम्पग्दर्शनादिकनिकूंत था जीवादिकनिकूं जाननो अवस ॥६॥!
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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