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सूत्रम्
॥३०५॥
वखत.) पण प्रमाद वश न थजे (मूळसूत्रमा अनुस्वारनो लोप थयो छे. अने ते प्रमाणे बीजु. पण व्याकरण विरुद्ध आवे तो समजी आचा०ल लेबु के. मागधीमां तथा संस्कृतमां कंइक भेद छे.) अंतर्मुहर्तनो वखत बताववानुं कारण ए छे के. केवळज्ञान विनाना जीवोने स
मय विगेरेनुं वारीक ज्ञान नथी तेथी तेटलो बखत बताच्यो. खरी रीते तो एक समय मात्र पण प्रमाद न करवो एवो सुगुरुनो ॥३०५॥ उपदेश जाणवो. कयु छे के.
"सम्प्राप्य मनुषत्वं संसारासारतां च विज्ञाय हे जीव ? किं प्रमादान्न चेष्टसे शान्तये सततम्? ॥१॥ मनुष्य पणुं पामीने संसारनी असारता समजीने. प्रमादथी केम वचतो नथी तथा हे जीव शांतिना माटे महेनत केम करतो नथी? ननु पुनरिदमतिदुर्लभ मगाधसंसारजलधिविभ्रष्टम् । मानुष्यं खद्योतकतडिल्लताविलसितप्रतिभम् ॥
तुं जोतो नथी के आ अतिदुर्लभ संसार समुद्रमा भ्रष्ट थएला मनुष्यने आगीआना कीडाना प्रकाशवा जेवू अथवा विजळीना झवकारा जेवू संसारी सुख छे.
वळी शास्त्राकार कहे छे के शामाटे प्रमाद न करवो? सांभळो. तारी वय (उमर) दिवसे दिवसे व्यतीत थाय छे. जुवानी चाली | जाय छे.! (मूळ सूत्रमा वय अने जुवानी एक छतां जुवानीमां मोह थाय माटे ते जुदं बतावेलुं छे.) जुवानीमां धर्म अर्थ अने 5 ५ काम त्रणे सधाय छे. माटे मोहमां न पडतां तेमां धर्म साधी लेवो गुरु कहे छे के हे शिष्य! ते जुवानी जल्दीथी जाय छे. कयुं छे के.
"नइवेगसमं चवलं च जीवियं जोव्वणं च कुसुमसमं। सोक्खं च अणिचं तिषिणवि तुरमाणभोजाई" ॥
२RS२ॐ