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आचा०
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निषीथिका - 'बीजुं अध्ययन'
पहेलुं अध्ययन कहीने बीजुं कहे छे, तेनो सबंध आ छे के गया अध्ययनमां स्थान वतान्युं, ते केवुं दोय तो भगवाने योग्य थाय, अने ते स्वाध्याय भूमिमां शुं करनुं, शुं न करखूं, ते अहीं कहेशे. आ संबंधे आ अध्ययन आव्युं छे. एना चार अनुयोगद्वार थाय छे, नाम निष्पन्न निक्षेपमां "निपीथिका " एवं नाम छे, आ निपीथिकानो नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काळ भाव छ प्रकारे निक्षेपो छे, नाम स्थापना पूर्व माफक छे, द्रव्य निषीथनो आगमथी ज्ञशरीर भव्यशरीर छोडीने जे द्रव्य प्रच्छन्न (छानुं) होय ते छे, [टीकाना संशोधके टीपणामां लख्युं छे के निशीथ निपीध वंजेनुं प्राकृतमां एक 'निसीह' शब्द वडे बोलतं होवाथी एज प्रमाणे निक्षेपानुं वर्णन छे, तेज प्रमाणे निषीधिका निशीथिका वने नामनुं एकपणुं छे. क्षेत्र निपीथ ते 'ब्रह्मलोक' नामना देवलोकमां रिष्ट विमाननी पासे 'कृष्ण राजाओ' जे क्षेत्रमां छे, ते तथा जे क्षेत्रमां निपीयनुं वर्णन चाले ते काळनिषीय ते कृष्ण [ काळी अंधारी ] रात्रिओ अथवा जे काळे निपीयनुं वर्णन चाले,
भावनिपीथ 'नो आगमथी' आ कहेवातुं सूत्र अध्ययनज छे, कारण के ते आगमनो एक देश छे, नाम निष्पन्न निक्षेपों पुरो थयो, इवे सूत्रानुगममां सूत्र कहे छे, '
सेभिक्खू वा २ अभि० निसीहिये फासूयं गमणाए, से पुण निसीहियं जाणिज्जा - सअंडं तह॰ अफा० नो चेइस्सामि ॥ से भिक्खू० अभिकंखेज्जा निसीडिय गमणाए, से पुण नि० अप्पपाणं अप्पचीयं जाव संताणयं तह० निसीहियं फासूयं . चेइस्सामि, एवं सिज्जागमेणं नेयन्त्रं जाव उदयप्पसूया ॥ जे तत्थ दुवरगा तिवग्गा चत्रग्गा पंचवरगा वा अभिसंधा
सूत्रम्
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