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सूत्रम्
१०४॥
दव्वे खित्ते काले भावेऽवि य उग्गहो चउद्धा उ । देविंद १ रायउग्गह २ गिहवइ ३ सागरिय ४ साहम्मी ॥ ३१६ ।। आचा०४ . द्रव्य अवग्रह क्षेत्र अवग्रह काळ अवग्रह अने भाव अवग्रह एम चार प्रकारनो अवग्रह छे.
अवग्रहनुं वर्णन ॥१०४४॥
• अथवा सामान्यथी पांच प्रकारनो अवग्रह छे. (१) देवेंद्रनो अवग्रह-ते लोकना मध्य भागमा रहेल मेरु पर्वतना रुचक प्रदेशथी दक्षिणना अर्ध भागमा रहेल जग्यानो. ६ (२) राजा-ते चक्रवर्ती महाराजा के बादशाहनो भरत विगेरे क्षेत्र आश्रयी जे जग्या तेना वंशमां होय तेमां साधु विचरे ते. (३)
गृहपति-ते गामडामा रहेनार महत्तर (पटेल) विगेरेनी पासे गामना महेल्ला विगेरेनो अवग्रह. (४) शय्यातर (घरधणी) नो 5 तेनी खाली पडेली घंधशाळा विगेरेमां ज्यां साधु उतरे छे, ते (५) साधर्मिक ते साधुओ-जेओ मास कल्पवडे त्यां रह्या होय 8 ६ तेओनी पासे तेमनी मागेली जग्यामा उतरवू ते वसति विगेरेनो अवग्रह । जोजन छे, (बने दिशामा २-२॥ गाउ जतां) चारे ।
है दिशामां जाय, आ प्रमाणे पांच प्रकारनो अवग्रह वसति विगेरे लेतां यशवसरे अनुज्ञा लेवा योग्य छे. हवे प्रथम बतावेल . द्रव्यादि अवग्रह बताववा कहे - .
दव्वुग्गहो उ तिविहो सचित्ताचित्तमीसओ वेव । खित्तु गहोवि तिविहो दुविहो कालुग्गहो होइ ॥ ३१७॥ है द्रव्यनो अवग्रह त्रण प्रकारनो छे. शिष्य विगेरेनो सचित्त छे, रजोधरण विगेरेनो अचित्त अने शिष्य रजोहरण विगेरे साथे में र स्वीकारतां मिश्र अवग्रह छे, क्षेत्र अवग्रह पण सचित्त विगेरे त्रण प्रकारनोज छे,अथवा गाम नगर अरण्य भेदथी त्रण प्रकारनो छे,
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