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सूत्रम्
॥८८
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नयुक्ति सहित वर्षको
एवंभूत ए
S ..उद्देशो समाप्त करवा कहे छे. आ प्रमाणे शास्त्रमा बतावेली विधिए श्री वर्द्धमानस्वामी जेओ चार ज्ञान युक्त छे, तेमणे अनेक आचा
( प्रकारे नियणुं कर्या विना आचर्यो, कारण के ते प्रमाणे बीजो मुमुक्षु पण भगवानना दाखलाथी मोक्ष आफ्नार मार्गवडे आत्महितने ॥८४८॥
आचरतो विचरे, आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी जंबृस्वामीने कहे छे. ते हुं कहुं छु.जे वीर प्रभुना चरणनी सेवा करतां में सांभळ्युं छे. र आ प्रमाणे सूत्रानुगम तथा सत्रालापक निष्पन्न निक्षेप सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति सहित वर्णव्यो छे. हवे नयोन वर्णन करे छे. ॐ नैगम संग्रह व्यवहार ऋजुसूत्र शब्द समभिरुढ एवंभूत ए प्रमाणे सामान्यथी ७ नय छे. ते संमतितर्क विगेरेमां लक्षणथी * अने विधानथी विस्तारथी कह्या छे, माटे अहींया तेज नयोने ज्ञान क्रिया ए बने नयोमा समावीने समासथी कहीए छीए. है आ आचारांग सूत्रना अधिकारमा ज्ञान क्रिया एम बे नयोनो समावेश थाय छे, तेथी तथा ते ज्ञान क्रियाने आधिन मोक्ष
होवाथी, अने मोक्ष माटे शास्त्रनी प्रवृत्ति छे, एम जाणवू, अने अहींआं ज्ञान तथा क्रिया परस्पर संबंध राखीनेज विवक्षित कार्य | सिद्धिमां समर्थ छे, पण एकलं ज्ञान के एकली क्रिया समर्थ नथी, माटे अहीं ते बे ज्ञान क्रिया नयने समजावीए छीए.
ज्ञान नयवाळानो अभिप्राय. ज्ञान प्रधान छे, पण क्रिया नहीं, कारण के समस्त (वधा) हेय पदार्थने त्यागवा, उपादेयने स्वीकारवा,ए प्रवृत्ति ज्ञानने आधीन छे. तेज बतावे छे, के सारी रीते निश्चय करेला सम्य ज्ञानथी प्रवर्तन करनारो अर्थ क्रियानो अर्थी पोतार्नु कार्य बगाडतो नथी. का छे के.
विज्ञप्तिः फलदा पुंसां, न क्रिया फलदा मता । मिथ्याज्ञानात् प्रवत्तस्य, फलासंवाददर्शनाद् ॥१॥
छ, माटे अब
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