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आचा०
सूत्रम्
॥२८०॥
॥२८॥
CRESCRECA
प्रश्न-सूत्रमा वर्तन क्रियाने नथी लीधुं छतां शा माटे प्रक्षेप करी छो?
उत्तर-ज्यां कोई विशेष क्रिया लीधी न होय त्यां पण सामान्य क्रिया होय छे, तेथी पहेलांनी क्रियाने लइने वाकय समाप्त कराय छे, ए प्रमाणे वीजे पण ज्यां साक्षात् क्रिया न लीधी होय त्यां पण पूर्वनी सामान्य लेवी अथवा मूळ ते आध (प्रथम) अथवा प्रधान छे, अने स्थान ते कारण छे, तेमां मूळ अने कारण ए वेनो कर्मधारय समास करीए; तो एवो अर्थ थाय के जे शब्दादि-गुण छे, तेज मूळ स्थान संसारनुं प्रधान कारण छे बाकी वर्षा पूर्व माफक लेवु. ते गुण अने मूळ स्थान -नियम्य-(दोर: ववा योग्य) तथा नियामकभाव बतावतां तेना तेना स्वीकारेला विषय कपाय विगेरेनां बीज अने अंकुरना न्यायवढे परस्पर कार्य-| कारणभाव सूत्रवडेज वतावे छे, एटले संसारनं मूळ अथवा कर्मचें मूळ अथवा कपायोनें स्थान आश्रय ते, शब्दादि गुण पण आज छे, अथवा कपाय मूळ शब्ददिकनुं जे स्थान छे, ते कर्म संसार छे, अने ते ते स्वभावनी माप्तिथी गुण पण तेज छे, अथवा शब्दादिक कपाय परिणाम मूळ जे संसार अथवा कर्मन जे स्थान मोहनीयकर्म छे, ते शब्दादि कपायथी परिणामवाळो आत्मा छे, तेना गुणनी प्राप्तिथी गुण पण तेज छे, अथवा संसारकषाय मूळ जे आत्मा, तेनुं स्थान विषयोनो अभिलाष ते पण शब्दादि विषयपणाथी गुणरुपज छे, अने अहींया विषयना लेवाथी विषयीना पण आक्षेपथी, अने मुचन मात्र करवाथी सूत्रनुंपण. एम जाणवू के, जे जीव गुणमां, अथवा गुणोमां वर्ते छे, ते मूळ स्थानमां अथवा मूळ स्थानोमां वर्ते छे, अने जे मूळस्थान विगेरेमा वर्ते छे, तेज गुणोमां वर्ते छे.
RECENESS