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सूत्रम् ॥२७६॥
गतिनोज हेतु छे, अने ते बे समयनो छे एटले पहेला समयमां बांधे अने बीजा समयमा भोगवे अने ते कर्मनी अपेक्षाए त्रीजा सआचा05 मयमां अकर्मता थाय छे..
प्रश्न-कवी रीते ? उत्तर-जे प्रकृतिथी सातावेदनीय छे, ते कषाय विनानुं छे, अने तेथी स्थितिनो अभाव छे, तेथी बंधा॥२७६॥ है। ववानी साथे खरी पडे छे, अनुभावथी अनुत्तर विमानमा उत्पन्न थएल देवता अतिशय सुखने भोगवे, ते प्रदेशथी स्थुल लुख्खा 15 धोळा विगेरे बहु प्रदेशवाला छे. का छे के
अप्पं बायरमउयं बहुं च लुक्खं च सूक्किलं चेव । मंदं महत्वतंतिय साताबहुलं च तं कम्मं ॥१॥
स्थितिथी अल्प छे, कारण के त्यां स्थितिनो अभाव छे, परिणामथी बादर छे, अने अनुभावथी मृदु ( कोमळ ) अनुभाव छे, प्रदेशथी बहु छे, अने स्पर्शथी लुख्खं छे, वर्णथी शुक्ल (धोलु) छे लेपथी मंद छे जेमके करकरी भूकीनी मुठी भरीने पालीस 8 करेली भीत उपर नाखतां जेम अल्प (नही जेवो) लेप थाय, तेम महाव्यये करेलु ते एक समयमांज बधुं दूर थइ जाय छे, साता
वेदनीना घणापणाथी अनुत्तर विमानना देवता, सुखनु घणापणुं छे ( सुख भोगववा छतां तेमने अल्पमोहथी नवां अशुभ कर्म 4धातां नथी) इर्यापथिक कह्यु.
हवे आधा कर्म कहे छे-जे निमित्तने आश्रयी पूर्वे कहेला आठे प्रकारना कर्म बन्धाय ते आधाकर्म छे, अने ते शब्द, स्पर्श, रस, रुप, अने गंध विगेरे छे, जेमके शब्द विगेरे काम गुणना विषयनो रसीयो सुखनी इच्छाथी मोहमा जेनी बुद्धि हणाइ गइ छे,
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