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आचा०
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तस्मिन् पद्मे तु भगवान् दण्डी यज्ञोपवीत संयुक्तः । ब्रह्मा तत्रोत्पन्नस्तेन जगन्मातरः सृष्टाः ॥ ५ ॥ अदितिः सुरसङ्घानां दितिर सुराणां मनुर्मनुष्याणाम् । विनता विहङ्गमानां माता विश्वप्रकाराणाम् ॥ ६ ॥ कद्रुः शरीरसृपाणां मुलसा मात तु नागजातीनाम् । सुरभिचतुष्पदानामिला पुनः सर्व बीजानाम् ॥ ७ ॥ फक्त गहवर (पोलाण) ना आकारवाळं महाभूतोथी रहित हतुं तेमां अचिंत्य आत्मा विश्व (इश्वर) पोते सुतेलो तप करे छे. ३ ते त्यां सुतेला विभुनी नाभीमांथी एक कमळ उत्पन्न थयुं ते उगता सूर्यना मंडळ जेवुं सोनानी कर्णिकावाळु रमणिक हतुं (४) पद्ममाथी भगवान दंड धारण करेल जनोइ पहेरेला ब्रह्मा उत्पन्न थयो तेणे जगननी माताओने रची छे. (५) देवताओना समूहनी माता अदिति छे, अने असूरोनी माता दिति छे. मनुष्यनो मनु छे. पक्षीओनी माता विनता छे. आम माणे विश्वना प्रकारोनी माताओ ब्रह्माए बनावी. (६)
सरीसृपनी माता कद्रू छे. अने नागनी जातीओनी माता सुलसा छे. तेम वधां चोपगां प्राणीनी मा सुरभि छे। अने सर्व बीजोनी माता इला छे. [आ प्रमाणे पुराणवादीओ बोले छे, तेम बीजा धर्मवाळा पण पोतानी बुद्धि प्रमाणे कल्पना करे छे, तेम समज
वीजा मवाळा केला अनादि लोक माननारा छे जेमकेशाक्य मतवाळा कहे छे हे भिक्षुओ !
अनव दग्र [अनादि] आ संसार छे तेनी पूर्व कोटी जणाती नथी, निवारण सत्वोने अविद्या नथी, तेम जीवोनो उत्पाद नथी, वळी अंतवाळो आ लोक छे जगतना प्रलयमां बधानो नाश थाय छे, तथा अंत विनानो लोक छे कारण के विद्यमान वस्तुनो सर्वथा नाशनो असंभव छे. कारण के एवं नथी [अर्थात् छेज ] केटलाक तो बन्नेने पण माने छे ते बतावे छे.
सूत्रम
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