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आचा०
॥७२२
FECRECISRE
मना-बन-मन-
क्षपक श्रेणीमां जेने जेटलो काळ कषायो क्षीण थाय, तेने तेटलानो क्षय थवाथी देश विमुक्ति छे, तेथीसाधुओ देश विमुक्त छे. भवस्थ केवली साधुओ पण भव उपग्राहिक कर्मना सद्भावथी देश विमुक्तज छे, अने सर्वथा विमुक्त तो सिद्ध भगवतंज थाय छे. (गाथार्थ)
18 सत्रम शंका-मोक्षनी पूर्वे बंधपणुं होय छे, जेमके निगड (हेड) विगेरे बन्ध होय तो तेना मोक्षना संभव थाय, ते शंका दूर करवा माटे बन्ध अभिधान पूर्वक मोक्ष बतावे छे.
॥७२२॥ कम्मयदव्बेहिसम, संजोगो होइ जो उ जीवस्स । सो वन्धो नायव्यो, तस्स विगो भवे मुक्खो ॥२६॥ कर्म वर्गणाना द्रव्य (पुद्गलो) साथे जे जीवनो संयोग छे, ते प्रकृति स्थिति अनुभाव अने प्रदेश रुप बद्ध स्पृष्ट निधत्त निकाचन अवस्थाको बन्ध जाणवो. कारण के आत्मानो एकेक प्रदेश अनंत अनंत कर्म पुद्गलो वडे बन्धायली छे, अने अनंत अनंत नवा बन्धाइज रह्या छे, कारणके बाकीना अग्रहण योग्य छे. प्र०-आठ प्रकारनां कर्म केवी रीते बन्धाय छे ? उ०-मिथ्यात्वना उदयथी-कयुं छे, के.
" कह णं भंते ! जीवा अट्ट कम्मपगडीओ बंधंति ?, गोअमा? णाणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज कम्मं निअच्छन्ति, दंसणमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं मिच्छत्तं णियच्छन्ति, मिच्छत्तणं उइनेणं एवं खलु जीवे अट्ठ कम्मपगडीओ बन्धइ" यदि, वा-" णेहतुप्पिअगत्तस्स; रेणुओ लग्गई जहा
अंगे। तह रागदोसणेहालियस्स कम्मपि जीवस्स ॥१॥". म०-हे भगवन् जीवो आठ प्रकारन' कर्मो केवी रीते बांधे छे ? .
बाबा-बार
पर