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ॐगरव-नाव-
६ वी (अने तेने शांत उरवो) आचा०
बीजा पांचमा उद्देशानो अधिकार-उपकरण तथा शरीरनो मोक्ष (त्याग) करवो, ते संक्षेपथी तथा खुलासाथी कहे छेला एटले चोथा उद्देशामां आ अधिकार छे, के वैहानस ते उद्वन्धन (फांसो खावो) गार्द्ध पृष्ठ ते बीजाने मांस विगेरेना हृदयना
सूत्रम ॥७२०॥ न्यासथी (बीजाने पोतानुं मांस अर्पण करवु ते) गृद्ध (गीध) विगेरेथी पोतानो नाश कराववो.
D७२०॥ एबे प्रकारना मरण [आपघात] नुं वर्णन-पाचमा उद्देशामां-ग्लानता अने भक्त परिज्ञा समजवी, छठामा एकत्व भावना * तथा इंगित मरण जाणवू. सातमामां मास विगेरेनी भिक्षुकनी प्रतिमाओ बतावी छे तथा पादपोपगमननुं वर्णन छे, आठमामां अनु
प्रर्व विहार करनारा दीर्घ संयम पाळनारा शास्त्रार्थ ग्रहणना स्वीकार पछी तेनाथी निवृत्ति लेवा संयम अध्ययन तथा अध्यापन द (शीखव) तथा निर्मक क्रिया करनारा साधुओ तैयार थया पछी (उत्कृष्ट तप वडे) कायाने दुर्बळ बनावीनी (आचार्य के गच्छनायक) भक्त परिज्ञा, इंगित मरण अथवा पादपउगमन ए त्रणमांथी कोइ पण स्वीकारे तेनुं वर्णन छे.
आ प्रमाणे पांच गाथामो संक्षेपथी अर्थ कह्यो, अने विस्तारथी तो दरेक उद्देशामां कहेवाशे, निक्षेप त्रण प्रकारे छे, ओघ निष्पन्न नाम निष्पन्न अने सूत्रालापक निष्पन्न छे, ओघमां अध्ययन छे नाममां विमोक्ष छे, ते विमोक्षना निक्षेपा नियुक्तिकार कहे छे.
नामठवणविमुक्खो, दवे खित्ते य काल भावे य; एसो उ विमुक्खस्सा निक्खेवो छन्धिहो होइ ॥२५८। नाय स्थापना द्रव्य क्षेत्र काळ अने भाव विमोक्ष एम छ प्रकारे छे, संक्षेपथी कह्या, अने विशेपथी कदेवा नाम स्थापना सुगट्रमने छोडी द्रव्यादि विमोक्ष बताववा कहे छे.
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