________________
प्रत्याक्यानपरिज्ञावडे त्यागे छे, तेणेज आरंभो सारीरीते जाणेला समजवा. आचा० -जे आरंभोनो परिज्ञाता छे, ते बीजुं शुं करे ? ते कहे छे.
सूत्रम ते महा मुनी पूर्वे वतावेला उत्तम गुणवाळो छे, ते क्रोध मान माया लोभने त्यागीने मोहनीय कर्म तोडे; ('त्यागीने' ए अ॥७१६॥ 8 व्यय प्रथम लेवानुं कारण ए छे के ते क्रोध विगेरे चारे कपायो वधा भेद सहित त्यागवाना छे. अने क्रोधने प्रथम लेवानुं कारण,
॥७१६॥ है तेनो संबन्ध मान साथे छे. एरले मानीने क्रोध थाय छे. तथा लोभने माटे माया थाय, माटे प्रथम माया लीधी छे. अने बधा दोषांना आश्रय तथा सौथी मोटो अने छेवट सुधी रहेता होवाथी लोभने छेल्लो लीधों छे.
अथवा क्षपणा ते कर्मनी निर्जरामां ते प्रमाणे क्रम छे. 'चकार' निश्चयथी जुदी जुदी अपेक्षा माटे समुच्य अर्थमां छे) तेथी ए प्रमाणे क्रोध विगेरे मोहने त्यागनारो संसार संतति (भवभ्रमण) थी तु? (छुटेलो) तीर्थकर विगेरेए वर्णव्यो छे. एवं सुधर्मास्वामि कहे छे. अथवा हवे पछीनुं पण तेओ कहे छे, ते वतावे छे. ____कायस्स वियाघाए एस संगामसीसे वियाहिए सेहु पारंगमे मुणी, अविहम्माणे फलगावयही
कालोवणीए कंखिज्ज कालं जाव सरीरभेउत्तिबेमि धूताध्ययनम् (सू० १९६) ६-५॥ र औदारिक विगेरे त्रण शरीर अथवा चार घाति कर्मनो नाश करवा माटे ते मुनी संग्रामना मथाळे उभेलो वर्णव्यो छे. अथवा
चि धातुनो अर्थ एकहुं करवानो छे ते एकठु थाय छे. ते कायने आयुष्यना क्षय सुधी घात करनारो बने, [कायानो ममत्व मूकीद
RIESECRECAREES
नार