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आचा०
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केवळी भगवंतने समुद्घातनी अवस्थामां बीजा छठ्ठा अने सातमा समयमां छे. वैक्रियकाय योग देव नारक अने बादर वायुकायने । छे, अथवा बीजा कोइ वैक्रिय लब्धिवालाने होय छे. तेनो मिश्र योग देवता नारकिने उत्पत्ति समये छे अथवा नपुं वैक्रिय शरीर बनावनार बीजाने पण होय छे, आहारक योग चौद पूर्वी साधु ज्यारे आहारक शरीरमां स्थित होय छे त्यारे छे अने तेनो मिश्र - योग निर्वर्त्तना (बनाववा) ना काळमां होय छे.
कार्मण योग - विग्रह गतिमां अथवा केवलि समुद्घातमां त्रीजा चोथा पांचमा समयमां छे.
आ प्रमाणे पंदर प्रकारना योगवडे आत्मा आठ प्रदेशने छोडीने तपेला वासणमां उछळता पाणीनी माफक उद्वर्तमान सर्व | आत्माना प्रदेशोवडे आत्मा प्रदेशनी अवष्टब्ध आकाश भागमां रहेल कार्मणशरीरने योग्य कर्मदळने जे बांधे छे तेने प्रयोगकर्म कहे छे. कहां छे के
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'जाव णं एस जीवे एयंइ, वेयइ, चलइ, फंदईत्यादि ताव णं अहविहबंध वा सत्तविहबंध वा छfair वा विबंधए वा नो णं अबंधए " ।
ज्यां सुधी आ जीव हाले छे. वधारे हाले छे. चाले छे. फरके छे. त्यां सुधी आठ प्रकारना कर्मनो बंधक सात प्रकारना छ प्रकारना अथवा एक प्रकारना पण कर्मनो बंधक छे, पण ते अबंधक होतोज नथी.
समुदान कर्म - ( समुदान शब्दनी उत्पत्ति सं. तथा आ उपसर्ग साथ दा. धातु जे देवाना अर्थमा छे, तेनुं ल्युट अंतथी पृषोदर विगेरे
सूत्रम
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