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॥६६४॥
मेळवीने मेळवेल पुण्य पापपणाथी अभिसंबुद्ध जाणवा, त्यार पछी सत् असत्नो विवेक जाणनारा होय ते अभिनिष्क्रांत छे, त्यार आचा०
पछी आचारांग सूत्र भणेला तथा तेनो अर्थ समजीने चारित्र पाळनारा अनुक्रमे प्रथम शिक्षक (शिष्य) गीतार्थ पछी क्षपक (तपस्वी) पछी परिहारविशुद्धि चारित्रवाळो तथा एकलविहारी जिन कल्पिक सुधी ऊंचे चढनारा मुनिओ बने छे. अने कोइ अभिसंबुद्ध पुरुष
3 सूत्रम ॥६६४॥ ४ दीक्षा लेवा तैयार थयो होय तो तेन पोतानां सगां जे करे ते कहे छे.
तं परिकमंतं परिदेवमाणा मा चयाहि इय ते वयंति! छंदोवणीया अज्झोववन्ना अकंदकारी जणगा रुयंति, अतारिसे मुणि [णय] ओहं तरए जणगा जेण विप्पजढा, सरणं तत्थ नो समेइ, कहं नु नाम से तत्थ रसइ ?, एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि तिबेमि(सू० १८०) धूताध्ययनोदेशकः ६-१
जे तत्व स्वरुप जाणीने गृहवासथी पराङमुख वनीने महा पुरुषोए आचरेला मार्गे जवा ( दीक्षा लेवा ) तैयार थयो होय तेने माता पिता पुत्र कलत्र विगेरे मळतां ते सगां तेने रोइने कहे छे, के अमने तुं न त्यज, एम दया उपजावतां बोले छे, तथा वीजें शुं बोले छे, ते कहे छे, ताराछंद (अभिप्राय) ने अमे अनुकुल छीए, तारा उपर अमारो पूर्ण विश्वास छे, तेथी अमने न छोड, एम आनंद करीने ते सगां रहे छे, वळी आ प्रमाणे बोले छे, के "तेवो मुनि संसार तरी शकतो नथी के जे पाखंड (मुनिना बोध) थी ठगाइने मावापने त्यजीने दीक्षा ले." आम कहे, तो पण जेणे संसारर्नु तत्व जाण्यु छे, तेवो जे करे, ते कहे छे, जो के आ सगां मारा उपर पूर्ण प्रेमी छे, छतां पण ते खरे वखते शरण आपतां नथी, अर्थात् तेमनु शरण स्वीकारतो नथी, शा माटे आ शरण नथी ? ते कहे छे, ते गृहवास बधा तिरस्कारने योग्य नरकना प्रतिनिधि समान अने शुभद्वारने परिघ समान छे, तेमां कोण
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