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सूत्रम्
ॐ आंखना बधा रोगोनो घोर आकर (समूह) थाय छे तथा 'जिमियंति' जाडयता-(चरबीन व अने लोहीन पाणी थq,), तेथी आचा० शरीरनां बधां अवयवोन परवशपणुं ( अवशित्व ) छे.[जेने लीधे जोइए; तेम, हाली-चाली शकाय के, फरी शकाय नहि
'कुणियंति' गर्भाधानगा दोषथी एक पग टुंको होय; अथवा, एक हाथ खोडवाळो होय ते कुणिरोग छे. 'खुज्जियंति' कुबडो. ॥६५२॥
तपीठ विगेरेमा कुबडाप' होय; ते, 'कुबजी छे.' मातपिताना लोही-वीर्यनो दोष होय; तो तेथी,गर्भमा रहेला दोपोथी कुब्ज-(कुबडो) Vवामन विगेरेनी खोडो शरीरमां थाय छे; कर्जा छे केः
गर्ने वातप्रकोपेन, दौदे वाऽपमानिते ॥ भवेत् कुब्जः कुणिः पंगुर्मको मन्मन एवा वा ॥१॥ - गर्भनी अंदर वायुना प्रकोपथी अथवा दोदला न पूरावाथी गर्भमा रहेलो जीव कुबडो कुणिरोगवाळो पांगळो मुंगो के मन्मन #रोगवाळो थाय छे, आंमां 'मुंगो' अने मन्मन एकांतरित (पेटना रोग पछीना रोगमा) मुखदोषमां वतावे छे, तथा 'उदरिं च' ति
('च' समुच्चयना अर्थमां छे) वात, पित्त विगेरेना कारणे उत्पन्न थयेला आठ प्रकारना उदर रोग छे, ते रोगवाळो उदरी छे, तितेमां जलोदर रोग असाध्य छे, बाकीना तुर्त थएला दवा करतां मटे तेवा छे, तेना आ प्रमाणे भेदो छे.
पृथक् समस्तैरपि चानिलाधैः प्लीहोदरं बद्धगुदं तथैव ॥ आगंतुकं सप्तममष्टमं तु जलोदरं चेति भवंति तानि ॥१॥
बधा अनिल [वायु] विगेरे एकेकथी के समुदायथी १ वायुनो ( वातोदर )२ पित्तनो [ पितोदर ] ३ कफनो (कफोदर) 18 तथा ४ संनिपात (कष्ठोदर) पालीह (बरोळनी गांठ) ५ उदर रोग (काचवी अकृत विगेरे) ६ वद्धगुद [अजीर्णाश] ७ आंगतुक लं! ताव साथे उदर रोग (जीर्णज्वर) ८ जलोदर ए आठ रोग पेटना छे,
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