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अथवा कायवाळो नथी, एटले जेम वेदतावादी कहे छे के, एकज मुक्त आत्मा तेनी कायमां वीजा क्षीण कलेशवाळा प्रवेश करे छे, आघा० सूर्यनां किरणो सूर्यमां समाइ जाय छे, (तेम इश्वरमा बधु समाइ जाय छे,) तेम जैनमां सिद्धनुं स्वरुप नथी.
सूत्रम् ॥६३९॥
बळी न रुह (एटले बीज अने जन्मना अर्थमां रुह शब्द वपराय छे) एटले कर्म वीजना अभावथी फरीथी तेमने जन्म नथी. पण जेम वौद्धमतवाळा माने छे के पोताना दर्शनन अपमान थवाथी ते मुक्त परमात्मा पण जन्म ले छे.
दग्धेन्धनः पुन रुपैति भवं प्रमथ्य, निर्वाणमप्यनवधारितभीरुनिष्ठम् ॥
मुक्तः स्वयंकृतभवश्च परार्थ शूरस्त्वच्छासनप्रतिहतेष्विह मोहराज्यम् ॥१॥ जैनाचार्य तेमना मंतव्यथी तेमन खंडन करवा जिनेश्वरनी स्तुति करतां कहे छे के, बळेलुं लाकडं जेम उगी न शके, तेम मोक्षमां गयेला कर्म रहित थएला जीवने जन्म मरण न होय छतां संसारर्नु ममर्थन करीने निर्वाण प्राप्त कर्या पछी मुक्त थइने पण 51 ६ वौद्ध नायक पोतानी मेळे नवो भव लेनार पारकाने (शिक्षा करवा) माटे शूर वनेला तेणे विनां विचारे बीकणपणाना अंतवाद्धं निर्वाण
मान्यु छे (अर्थात परोपकार करवा दुष्टने दंड देवा पोतानाशाशननुं महत्व वधारवा जन्म ले छे) एवा विपरीत बोलनारा जेओतमारी आज्ञाथी बहार रहेला छे, तेमने विषे मोह राजानु आवु प्रबळ राज्य ! (जैन धर्ममां एवं मंतव्य छे के मुक्त जीवने फरी जन्म नथी)
तथा अमूर्त थवाथी तेने संग न होवाथी ते असंग छे, तथा स्त्री पुरुष नपुंसकनी गणतरीमा नथी. (त्यारे केवा छे ते कहे छे) विशेषथी जाणे ते परिज्ञ छे, तथा सामान्य बरोवर जाणे [देखे एवी संज्ञावालो ज्ञानदर्शन युक्त छे. प्र०-जोस्वरूपथी मुक्तात्मा
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ACTERA