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सूत्रम्
SHARE-कव
॥६२५॥
आचा०
साता के असातारुप छे, ते वातने नैयायिक तथा वैशेषिक मतवाला आत्माथी भिन्न गुण भूत संवेदनहुँ एकार्थपणुं समवायिझान IM वडे माने छे, तेव॒ तमे मानो छो, के आत्मा सथे एकपणे मानो छो? तेनो उत्तर मूत्रकार आपे छे, - ॥६२५
जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया, जेण वियाणइ से अया, तं पडुच्च पडि
संखाए, एस आयावाई समियाए परियाए रियाहिए त्तिवेमि (सू० १६५) ॥५-५॥ .. जे आत्मा नित्य उपयोग लक्षणवाळो छे. तेज विज्ञाता छे, पण ते आत्माथी पदार्थनो अनुभव करावनार ज्ञान जुडें नथी अने जे विज्ञाता छे, ते पदार्थनो परिछेदक उपयोग ते पण आ आत्माज छे. कारण के जीवनुं लक्षण उपयोग छे अने उपयोग ते ज्ञानस्वरुप छे, ज्ञान अने आत्माने अभेदपणे मानवाथी बौद्धमतने अनुकुळ झानज एकलु सिद्ध थशे, एम तमने शंका थाय तो जैनाचार्य
कहे छे, के तेम नथी, भेदनो अभाव फक्त अमे अहीं बताव्यो, पण एकता कही नथी, जो एम मानता हो के ज्यां भेदनो अभाव ६ तेज अक्यता छे, तो ते मानवु फक्त वार्तामात्र छेकारण के 'धोल्लं वस्त्र' तेमां घोल्लं तथा पट ए बन्नेमां भेदनो अभाव होवाछतां एकतानी माप्ति नथी, एमां पण शुक्ल पणाना व्यतिरेकवडे बीजो कोइपण पट [वस्त्र] नथी, एम मानो तो ते अशिक्षित (मुख) नो उल्लाप छे, कारण के तमारा कहेवा प्रमाणे मानतां शुक्ल (धोळा) गुणनो अभाव थतां सर्वथा पटनो अभाव थवा जशे.
वादी-त्यारे एम मानतां आत्मा विनष्ट थयो? जैनाचार्य-थवा दो ! अमारी कंइ हानि नथी, कारण के अनंत धर्मवाळी वस्तुनो अपर (वीजो) मृदु विगेरे धर्मनो सद्भाव
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