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आचा०
॥६२१॥
टुंक बुद्धिथी शंका- थाय, ते समये ते वस्तु खोटी अथवा साची विचारी होय, तो तेणे खोटी विचारेली होवाथी खोटा विचारने लीधे अशुभ अशुभ अध्यवसाय होवाथी ते मिध्यात्व छे, कारण के जेवी शंका करे तेवोज भाव मेळवे, एवं वचन छे, (६) अथवा | सम्यक् माननारने बीजी रीते खुलासो करे छे, शमिनो भाव शमिता छे ते शमिताने माननारो शुभ अध्यवसायवाळो उत्तर कालमां पण उपशमवाळोज रहे छे, अने बीजो तो शमिताने मानवा छतां कपायना उदयथी अशमिता थाय छे, एज प्रमाणे बीजा भांगामां | सम्यक् शब्दनी योजना करवी के सारूं विचारे तो सारं फळ मेळवे, तेज प्रमाणे सारं नरसुं तेनो विवेक विचारतो बीजाने पण उपदेश देवाने समर्थ थाय छे, कछु छे के, आगममां मति परिणत थवाथी यथायोग्य पदार्थो स्वभाव बताववाथी आ योग्य छे, आ अयोग्य छे, एवं विचारतो विद्वान बीजा नहि विचारताने पण समजावे छे, एटले गाडरनां टोळा माफक एक पछी एक जेम दोढे तेम कोइ विना विचारनो शंकावाळो होय, तेने कहे के हे भद्र ! तुं मध्यस्थता राखीने निर्मळ भावथी विचार के जिनेश्वरनुं कलं | जीवादितत्व विचार युक्तिने योग्य छे के नहीं ? ते आंखो बींचीने विचार, अथवा संयने सारी रीते पाळनारो होय, ते संयम सारी | रीते न पाळनारने कहे, के हे भद्र ! सम्यग् भाव पामीने हवे संयममां सारो रीते उद्यम कर ! शुं आंलंबीने ? उ०- पूर्वे कला प्रकारे ते संयममां कर्म संतति क्षय करवा रुप जे संधि छे. ते जो संयम सारो पाले तो, कर्म दूर कराय तेम छे, आ कर्म संतति तेसिवाय बीजी रीते क्षय थाय तेम नथी. वळी सारीरीते संयम पाळनारने शुं लाभ थाय, ते कहे छे, 'से' - ते सम्यक् रीते दीक्षा लेवाने तैयार थएलाने शंका रहित धर्म श्रद्धा होवाथी चारित्र लइ गुरुकुल वासमां रहेवाथी अथवा गुरुनी आज्ञामां वर्त्तवाथी जे गति थाय छे, अथवा जे पदवि प्राप्त थाय छे, तेने हे शिष्यो ! तमे सारी रीते जुओ! वधा लोकमां प्रशंसा, ज्ञानदर्शनमां स्थिरता चारित्रमां
सूत्रम्
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