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X विचारीने जोवा, ते बतावे छे, आ जे में का; ते तमे (हे शिप्यो!) पण, मध्यस्थता धारण करीने समर्यादने जुओ; वळी आ| TOD
पण जुओ. काळ ते, समाधि-मरण छे. तेनी अभिकांक्षावडे साधुओ मोक्षमार्गवाळा संयममां बधी प्रकारे वर्ते छे. आ प्रमाणे हुँ. सूत्रम् कहुं छु. इति ब्रवीमि शब्द, प्रकरण, उद्देशो, अध्ययन, श्रुतस्कंध के, परिसमाप्तिमां आवे छे, तेमां, अहीं अधिकारनी समाप्तिमा जाणवो. आचार्यनो अधिकार कह्या पछी विनेय (शिष्य) नो अधिकार कहे छे:
HTT६१३॥ वितिगिच्छसमावन्नेणं अप्पाणेणं नो लहइ समाहि, सिया वेगे अणुगच्छंति, असिता वेगे
अनुगच्छंति, अणुगच्छ माणेहिं अणणुगच्छमाणेकहंनिविजे ? (सू० १६१) विचिकित्सा ते, चित्तनो विप्लब छे, आम पण छे. एवा पकारना संकल्पो ते, युक्तिथी उत्पन्न थता अर्थमां मोहना उदयथी। मतिनो विभ्रम थाय छे. ते आ प्रमाणे:-आ महान् तपनो कलेश रेतीना कोळीया खावा जेवु निःस्वाद छे, ते करवाथी तेनुं फळ मळशे के नहि? कारण के, खेती करनार विगेरेने महेनत करवा छतां, फळ मळे छे के, नथी पण मन्तुं ? आवी मति मिथ्यात्वनो अंश उदयमां आववाथी तथा, ज्ञेयने जाणवू गहन छे तेथी थाय छे, ते ज्ञेयने बतावे छे.
अर्थ त्रण प्रकारनो छे. (१) सुखथी समजाय दुःखथी समजाय; अने वीलकुल न समजाय. - 1 त्रणे सांभळनारना आधार 18 उपर भेद छे, तेमा मुखाधिगम बतावे छे. जेमके-चक्षुवाळो होय; अने चित्रकळामां निपुण होय; तेने रुपप्रसिद्धि (चित्र करवू)
सुलभ छे, अने अनिपुणने दुःखेथी चीतराय; पण आंधळाथी तो, बीलकुल देखायाविना न चीतराय; तेमां अनधिगम रुप तो, अव
PROHTASSICALAM
वनव-वनर