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चा०
०९॥
॥ श्रीजिनाय नमः ॥
॥ श्रीआचाराङ्गसूत्रम् ॥
( मूळ अने शिलाङ्काचार्ये रचेली टीकानुं भाषांतर ) भाग चोथो
छपावी प्रसिद्ध करनार - पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा)
पांचमो उद्देशो कहे छे.
पांचमा उद्देशानो चोथा साथे आ प्रमाणे संबन्ध छे के, चोथामां कहां केः -- अगीनार्थ अपाकच वयनो साधु एकलो विचरतां दुःख पामे छे, तेथी ते दुःखो दूर करवा इच्छता साधुए हमेशां आचार्यनी सेवामां रहेवुं तथा, ते आचार्ये पण हृदनी उपमावाळा थ; अने तेमनी साथे बीजा साधुए रही तप-संयमथी युक्त वनीने निःसंगपणे विचरखं. [ए पांचमां उद्देशामां छे,] आवा संबन्धे | आवेला उद्देशानुं आ प्रथम सूत्र छे,
सूत्रम्
॥ ६०९ ॥