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६ प्रमाणे कहुँ छ स्त्रीसंगमां दुःख छे, माटे संग न करवो. वळी ते त्यागवानी, उपाय बतावे छे.
है आचा०४
'स' ते स्त्रीसंगनो त्यागी मुनि स्त्रीना कपडांनी, वेपनी तथा शणगारनी कथा न करे, आ प्रमाणे ते त्यजाय छे, तथा तेमने टू नरकमां लइजनारी तथा स्वर्गमोक्षमां विघ्नरूप अर्गला जेवी जाणीने ते स्त्रीनां अंगउपांगने न देखे, कारण के स्त्रीभोने देखतां तेना
१. सूत्रम्
जर 88 कटाक्षो महान अनर्थने माटे थाय छे. कहां छे केः
॥६०६॥ सन्मार्गे तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रिशणां, लज्जां तावद्विधत्ते विनयमपि समालम्बते तावदेव ॥8 भूचापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, यावल्लीलावतीनां न हृदिधृतिमुषो दृष्टिबाणाः पतन्ति ।।
नीतिकार कहे छे के पुरुष सन्मार्गमां इन्द्रियोंने राखवा त्यां सुधीज समर्थ थाय छे, तथा त्यां सुधीज लज्जा छे, तथा विनय ४ पण त्यां सुधीज छे, के लीलावती (सुंदर स्त्री) ना कानना छेडा सुधीखेंचाइने नीली पांखोवाळा पापणना चापवडे खेंचीने छोडेला | (कटाक्षो) पुरुपना हृदयनी धीरजने चोरनारा दृष्टिबाणो त्यां सुधी न पडे. तथा ते स्त्रीओने नरकनी आपनारी जाणीने तेनी साथे संमसारण (खानगी वात) पोतानी सगी बेन विगेरे पण न करवू. का छे केः
मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा, न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिद्रियग्रामः पंडितोऽप्यत्र मुह्यति ॥१॥ * माता बेन के दीकरी पोतानी होयः तेनी साथे पण एकान्तमा न बेसे कारण के इन्द्रियोनुं प्रवळ वधारे छे जेमां, पंडित पण - मोह पामे छे ! आq जाणीने स्वार्थमां तत्पर स्त्रीओमां ममत्व न करवो; तथा ते स्त्रीने मोह करनारी मंडन विगेरेनी क्रिया पोते न
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