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सूत्रम्
॥५६९॥
क्षय थयो छे. अथवा मिथ्याखनो हाल तेने उदय नथी, एटले सम्यक्त्वनी प्राप्तिना हेतुभूत कर्मविवर लक्षणवाळो संधि [अवसर / आचा०
अथवा शुभ अध्यवसायना जोडाणरूप संवि तने मळ्यो छे, तेने तारा आत्मामा स्थापन करेलो तुं नजरे जो, एथी हवे तुं एक क्षण पण || ॥५६९॥
प्रमाद न करजे. विषय विगेरेना कारणे प्रमादी न थइश, क्यो प्रमादी न थाय ? उत्तरः--'जे इमस्स' जे एटले जेणे तत्व प्राप्त कर्यु, एवा तवज्ञानीने 'जेना वडे आठ प्रकारनं कर्म' विशेष करीने ग्रहण थाय ते इन्द्रियोवाल विग्रह (शरीर) औदारिक छे, तेनो आ/५
वर्तमाननो समय [क्षण] सुखमां के दुःखमां वीत्यो. अने भविष्यमां वीतशे. ते दरेक क्षण शोधवानो स्वभाव छे, ते अन्वेपी कहेवाय Dछे, अने ते सदा अप्रमत्त रहे छे, आचार्य कहे छे के आ हुँ नथी कहेतो पण 'एसमग्गे आ कहेलो मोक्ष मार्ग आर्य पुरुपोए कहेलो
छे.एटले बधा त्यागवारूप धर्म (कुतीर्थ विगेरे) थी दूर रही मोक्ष किनारे पहोंचेला एवा तीर्थकर गणधरोए प्रकर्षथी पूर्वे कहेलो छे, वळी | तीर्थकरोए पूर्वे कहेलो अने हवे कहेवातो मार्ग कह्यो छे, एटलुंज नही पण ते प्रमाणे वर्तवानुं छे.ते कहे छे. 'उहिए'-संधि (अवसर) मळेलो है। जाणीने धर्मचरण माटे तैयार थएलो तु साधु एक क्षणमां पण प्रमाद न करीश. वळी बीमुं शुं समजवान छ? ने कह छे-जाणित्तु-दरेक पाणीनुं दुःख अथवा तेनुं मूळ कारण कर्म जाणीने तथा मनने प्रसन्न करनारु मुख जाणीने तुं प्रमादी न थइश. वळी दरेक जीवने || | दुःख अथवा कर्म जुदुं छे, एटलंज नहि पण कर्मनुं मूळ कारण अध्यवसाय पण दरेक पाणीनो जुदोज छे.ते बतावे छे, 'पुढो' जेओनो अभिमाय प्रथक छे तेओ प्रथक् छंदवाळा कहेवाय छे. एटले जुदी जुदी जातना बन्धना अध्यवसायना स्थानवाला छे. तेओ 'इह' ते आ संसारमा अथवा संज्ञावाळा संझी लोकमां मनुष्यो छे. अने तेज प्रमाणे बीजा जीवो पण जाणवा, अने दरेक संझी प्राणीनो जुदो जुदो संकल्प होवाथी तेना कार्यरूप कर्म पण जुदंज छे, अने तेना कारणरूप दुःख पण जुदा रुपवाळु छे, अने कारण भेद
454389CCES
रुस्वक्लव