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आचा०
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बन्ने बाजुना अंश जेमां देखाय त्यां संशय थाय छे, ते अर्थ संशय अने अनर्थ संशय एम वे भेद छे. अहीं अर्थ ते मोक्ष, तथा | मोक्षनो उपाय छे, तेमां मोक्षमां संशय नथी, कारण के तेने परम पद एम स्वीकार्य छे, पण तेना उपायमां संशय होय तो पण प्रवृत्ति थाय छे, अर्थ संशय ते प्रवृत्तिनुं अंग छे, अने अनर्थ ते संसार अने संसारना कारणो छे, तेना संदेहमां पण तिथ | छेज, कारण के अनर्थ संशय ते निवृत्तिनुं अंग छे, एथी अर्थमां अथवा अनर्थमां रहेला संशयने जाणतो होय तेने हेय उपादेयनी प्रवृत्ति थाय छे, तेज परमार्थथी संसारनुं परिज्ञान छे, ते बतावे छे, ते परिज्ञानवडे संशयने जाणनाराथी चार गतिवाळो संसार अथवा तेनुं मूळ कारण मिथ्यात्र अविरति विगेरे अनर्थपणे ज्ञ परिज्ञावडे जाणेलं थाय छे, ते बतावे छे, अने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे त्याग धाय छे, पण जे संशयने नथी जाणतो, ते संसारने पण नथी जाणतो, ते बतावे छे, 'संशयं संदेहने बन्ने प्रकारे न जाणनारानी हेय उपादेयनी प्रवृत्ति नहीं थाय, अने प्रवृत्ति विना संसार अनित्य छे, अशुचिथी भरेलो छे, घणां दुःख आपनारो छे, निःसार छे. एम ते जाणतो नथी, आ निश्चय केवी रीते थाय-के ते संशय जाणनारे संसार जाण्यो छे ? तथा शुं निश्चय करवो ? उ:- संसारना परिज्ञाननुं कार्य विरतिनी प्राप्ति थाय छे, तेथी सर्व विरतिमां प्रष्ठ (श्रेष्ठ) विरतिने बताववा कहे छे.
जे छेए से सागरियं न सेवइ, कट्टु एवमवियाणओ बिइया मंदस्स बालया, लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविजा अणासेवणय त्ति बेमि ( सू० १४४ )
जे छे ए— जे निपुण छे, जेणे पुण्य पाप जाण्यां छे, ते मैथुन (संसार संबंध) मन बुवन कायाथी करतो नथी, तेनेज संसार
सूत्रम
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