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गति छे. तथा तेमां कोइ जातनी बाधा नथी, माटे ते सर्वोत्कृष्ट छे, अने तेनां साधनो प्रकृत (चाल) उपकारक ज्ञान दर्शन संयम, ४ अने तप छे ते भावसार सिद्धिफल मेळववा तेनां साधन ज्ञानादिक छे तेमां आपणुं कार्य छे. एटले ज्ञानदर्शन चारित्ररुप-भाव
सूत्रम् सारवडे अहीं अधिकार छे. तेथी ते ज्ञान विगेरे जे सिद्धि (मोक्ष) ना उपायो छे, तेनी भावसारता बतावे छे.
॥५५१॥ लोगंमि कुसमएसु य काम परिग्गहकुमग्गलग्गेसुं। सारो हु नाणदंसणतवचरणगुणा हियहाए । २४२॥ ।
गृहस्थ लोकमां खराब (संसारी) सिद्धान्त छे, ते कामवासनाना आग्रहथी कुमार्ग छे, तेमां रक्त वनेला होवाथी काम परिग्रहनो आग्रही बनी गृहस्थ भावने तेओ प्रशंसे छे अने वोले छे के:
गृहाश्रमसमो धम्मों, न भूतो न भविष्यति। पालयन्ति नराः शूराः क्लीबा पाषण्डमाश्रिताः ॥ १॥
गृहस्थम जेवो धर्म थयो नथी, थवानो नथी, तेनुं पालन शूर पुरुषो करे छे, पण कलीव ( सब विनाना) पुरुषो तेने छोडी ४ बावा (साधु) बनी जाय छे, कारण के गृहस्थाश्रमने (गृहाश्रमने) आधारे बधा त्यागीओ रहे थे, तेवू सांभळीने (ओछी 8
बुद्धिवाळा) महामोहथी मृढ बनीने इच्छा मदन काममा प्रवर्ते छे, तेज प्रमाणे खरा साधु सिवायना वेशधारीओ पण जेमणे इन्द्रियोनी कुचेष्टा रोकी नथी तेओ पण ते चे प्रकारनी कामवासनाने वखाणे छे, एथी लोकमां साररूप ज्ञानदर्शन तप चारित्रना गुणो, उत्तम सुखवाळी श्रेष्ट सिद्धि मेळ्ववा माटे आदर करवा योग्य सार छे, कारण के ते हितसिदि आपनार छे, जो ज्ञानदर्शन तप चारित्रना गुणो हित माटे सार छे, तो शुं करवू ते कहे छे:
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