________________
आचा०
॥५२१॥
प्रश्नः - कदाच एम पण होय, परंतु बधाए तेत्रा इच्छाप्रणीत विगेरेथी दुर्गतिमां जइ दुःखनो स्पर्श भोगवनारा छे के कोइकज तेने योग्य कर्म करनारो दुःख भोगवे छे ? ते बतावे छे.
उत्तरः- वधा नहीं, पण जे अत्यंत क्रुर वधबंधन विगेरेनी क्रिया वडेज (चीकणा कर्म वांधी) वैतरणी तरण असिपत्र वनपत्र पडवानी तथा शाल्मली वृक्षनुं आलिंगन विगेरेथी थएल नरकनी भयंकर वेदनानी विरुप दशाने भोगवतो सातमी विगेरे नरकमां वसे छे, पण जे अत्यंत हिंसावाळा कर्मो न करे ते घणी पीडावाळां नरकोमां उत्पन्न थतो नथी, ठीक, एम हशे, पण आवुं कोण कहे छे, 'एगे वयंती' त्यादि चौद पूर्वी विगेरे मुनिओ कहे छे, अथवा जेने सकळ (वधा) पदार्थोनुं वतावनारुं ज्ञान छे, ते ज्ञानी वोले | | तथा जेवुं दिव्यज्ञानी केवळी वोले छे तेमज श्रुत केवळी वोले छे, तथा जे श्रुत (ज्ञान वाळा ) केवळी वोले छे, तेज निरावरण केवळज्ञानी बोले छे, (ते प्रत्यागत सूत्रवडे जाणवुं के) 'नाणी' विगेरे - ज्ञानी केवळी जे बोले छे तेतुं श्रुत केवळी यथार्थ बोलता होवाथी ते एकज छे, कारण के केवळी प्रभुने दरेक पदार्थ साक्षात् देखाय छे, अने श्रुत केवळी तेमना उपदेश प्रमाणे वर्ते छे. तेथी बोलवामां पण एक वाक्यता ( सरखापणुं ) छे; ते कहे छे, तथा वादीओनो विवाद तथा तेमनुं समाधान करे छे.
आवंती यावंती लोयंसि समणा व माहणा य पुढो विवायं वयंति से दिहं च णे सुयं च णे मयं च णे विष्णायं च णे उडूढं अहं तिरियं दिसासु सव्वओ सुपंडिलेहियं च णे- सव्वे पाणा सव्वे जीवा सव्त्रे भूया सव्वे सत्ता हन्तव्वा अज्जावेयव्वा परियावेयव्त्रा परिघेत्तव्वा
सूत्रम्
॥५२१ ॥