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त्यांथी चवीने कर्मभूमि आर्यक्षेत्र सारा कुळमांजन्म आरोग्यता धर्म श्रद्धा, तत्वसांभळ, अने संयम लइने पुरुंपाळी अनुत्तर विमान सुधीना आचा० देवलोकमां उत्पन्न थाय छे, फरीथी चवीने पूर्व माफक उत्तम संयोगो मनुष्य जन्म विगेरे मेळवी संयम लइने वधा कर्मनो क्षय | करे छे, तेथी एम कयु के पर एटले संयमवडे उपर बतावेली विधिए परं एटले स्वर्गमां जाय छे, अने परंपराए मोक्षमां जाय छे.
। सूत्रम् ॥४८९॥ अथवा पर एटले सम्यग्दृष्टि गुणस्थान जे चोथु छे, तेना वडे देशविरति ( पांचमुं गुणस्थान ) थी लइने अयोगी ( चौदमुं ॥४८९॥
गुणस्थान) सुधी चढे छे.
अथवा पर एटले अनंतानुबन्धी क्षय थवाथी कंडक स्थान निर्मळ थतां चढता भावे साधुओ दर्शनमोहनीय अने चारित्रमोहनीय कर्मनो क्षयरुप पर मेळवे छे, अथवा घातीकर्म अथवा अघातीकर्मनो क्षय करे छे. .
आ प्रमाणे कर्म खपाववा तैयार थयेला साधुओ पोतानुं आयुष्य केलं वाकी रहा तेनी आकांक्षा करता नथी, एटले लांच # आयु इच्छता नथी, अथवा असंयम जीवितने वांछना नथी.
अथवा पर बढे पर एटले उत्तर उत्तर तेजोलेश्याने मेळवे छे का छे के:"जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति एए णं कस्स तेयलेस्सं वीईवयंति ?, गोयमा!, मासपरियाए समये निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्सं वीइवयइ, एवं दुमासपरिआए असुरिंदवजियाणं भवणवासीणं देवाणं, तिमासपरियाए असुरकुमाराणं देवाणं चउमास
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- ॐ
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