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एगदवियस्स जे अत्थपज्जवा वयणपजवा वावि । तीयाणागयभूया, तावइयं तं हवइ दव ॥१॥ आचा० एक द्रव्यना जेटला अर्थना पर्यायो, अथवा वचनना पर्यायो छे, ते भूत-वर्तमान, भविष्यसहित होय; त्यारे ते द्रव्य थाय छे.
सासू (उपरना सूत्रनो परमार्थ ए छे के, कोइपण बस्तुमां द्रव्य पोते वस्तु छे छतां, तेमां जे स्वरूप बदलाय छे ते पर्यायो छे पूर्वे जे बदलाया ते भूतपर्यायो छे. चालुमां छे, ते वर्तमान, अने थवानो ते भविष्यना छे. ए वधांने जे साथे जाणे; तेज एक वस्तुना 18 एक पर्यायने पण जाणे अने ते एक पर्यायने पण बरोबर जाणे; ते सर्वने पण जाणे अने ते आ गाथामां वताव्युं छे के एक द्रव्यमांत्रणे काळना पर्यायो छे, अने पर्यायोसहित होय; तेज द्रव्य छे.)
उपर कहेल सर्वज्ञ ते तीर्थकर छे, अने तेज सर्वज्ञप्रभु सर्व सत्त्वोने उपकार करनारो, अने बनीशके तेवो उपदेश आपे छे ते ।। सूत्रकार बतावे छे.
सबओ पमत्तस्स भयं, सबओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं, जे एगं नामे से बहुं नामे, जे पहुं नामे से एग नामे, दुक्ख लोगस्स जाणित्ता वंता लोगस्स संजोगं जंति धीरा महाजाणं, परेण परं जंति, नावकं खंतिजीवियं (सू० १२३) द्रव्य विगेरेथी सर्व प्रकारे जे भय करनारुं कर्म उपार्जन करे; ते भय, मद्य विगेरेथी जे प्रमादी बने तेने थाय छे. ते बतावे छे के, प्रमादी द्रन्यथी बधा आत्ममदेशोथी कर्म एकछु करे छे. क्षेत्रथी छए दिशामा रहेलं; काळथी प्रत्येक समये, अने भावी
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