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सूत्रम्
॥४५२॥
सिच्चमाणा पुरिति गर्भ सूत्र. २॥ काव्य आचा०
आ चार प्रकारना कपाय तथा विषयना विमोक्षमां समर्थ आधार रुप मनुस्य लोकमां संसारी मनुष्यो साथे द्रव्यथी तथा भा
वथी बने प्रकारे जे पाश (मोहजाळ) छे, तेने सर्वक्षा छोड; कारण के ते जन समूह काम भोगनी लालसावाळो छे तथा ते मेळववा है ॥४५२॥! माटे जीव हिंसा विगेरे पापा आरंभे छे. तेथीज सूत्रमा कयुं छे के ते आरंभथी जीववावाळो छे, अने महारंभ परिग्रहथी रचना 18 करीने जीवननो उपाय योजे छे, तथा उभय एटले शरीरना तथा मन संबंधो अथवा आ लोक तथा परलोक संबन्धी (भोगाकांक्षी):
छे, वळी ते काम भोगमां रक्त थइने अशुभ कर्मनो उपचय करे छे. अने ते कर्म संचय करीने एक गर्भथी नीकळी वीजा गर्भमा 18 प्रवेश करे छे. अने संसार चक्रवाळ (चक्रावा) मा अरटनी घटमाळ जेम भराय अने ठलवाय ते न्याये जुनां कर्म भोगवे, अने फरी
नवां बांधीने भ्रमण करे छे. वळी ते अनिभृत (विना विचारनो) आत्मा केवो (दुष्ट) थाय छे ते कहे छे. 1d अविसे हासमासज्ज, हंता नंदीति मन्नई अलं बालस्स संगण, वेरं वढेइ अप्पणो (सू० ३) काव्य.
लज्जा भय विगेरेना निमित्तथी चित्तना विप्लववाडं जे हास्य (हांसी) छे, तेने मेळवीने इच्छा प्रेमी बनी (क्रीडानी खातर) 18 जीवोने हणी [शिकारमां] आनंद माने छे, अने वीजाओने फसाववा ते महा मोहथी घेरायलो अशुभ विचारवाळो बोले छे के "आ है
मग विगेरे पशुओ शीकारने माटे बनाव्यां छे, तथा शिकार सुखी पुरुषोनी क्रीडा माटे छे.” जेवी रोते जीव हिंसा सिद्ध करे छे. IA तेम जुठ चोरीमां पण सिद्ध करे के. आ जुटुं बोली ठगq के चोरी करवी ए तो बुद्धि बल तथा बहादुरी काम छे विगेरे समजी /
ॐARLS