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आचा०
सूत्रम्
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॥४५०॥
बीजो उद्देशो पहेलो उद्देशो कह्या पछी बीजो कहे छे. तेनो संवन्ध आ प्रमाणे छे:-पहेला उद्देशामां भाव सुतेलावताव्या; अने अहीं तेओना ५ सुवाथी “दुखि पडवानु" फळ बतावे छे. एस ते बन्नेनो संवन्ध छे, सूत्र अनुगम होवाथी सूत्र कहे छे:
जाइं च बुद्धिं च इहऽज्ज ! पासे, भूएहिं जाणे पडिलेह साय, तम्हाऽतिविजे परमंतिणच्चा, संमत्तदंसी न करेइ पावं ॥१॥
जाति एटले, जन्मथी लइने वाळकुमार-यौवन बूढापा सुधो वृद्धि छे, ते मनुष्यलोकमां, अथवा संसारमा इमणांज (काळना विलंब विना) तुं जो. तेनो सार आ छे के गुरु शिष्यने कहे छे के-हे भद्र ! हमणां जनमता जीवोने बूढापासुधीमां शरीर मन है संवन्धी केवां केवां दुःखो भोगवाय छे ते तु विवेक चक्षुथी जो, का छे केजायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स जंतुणो। तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरइ जाइ मप्पणो ॥१॥
जनमता माणसन जे दुःख छे, ते माणसने मरमी वखते पडतां दाखथी ते तपेलो होवाथी पूर्वथी जाती पण विसरी गयो छे. विरसरसियं रसंतो तो सो जोणीमुहाउ निप्फडइ । माऊए अप्पणोऽविअ वेअणमउलं जणेमाणो ॥२॥
माना चावेला आहारने गर्भमां बेठेलो वाळक परवश थइने खाय छे, अने पोते जनमती वखते पोताने तथा, माताने घणी त पीडा आपीने योनिद्वारा बहार नीकळे छे.