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आचा०
सूत्रम्
॥४४०॥
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॥४४॥
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सहे पण खेद न पामे. 'जागर' एटले असंयम निद्रा दूर थवाथी पोते संयममां जागतो छे अने अभिमानथी थता अमर्ष (अदेखाइ) एटले बीजान बगाडवानो अध्यवसाय (विचार) ते वैर छे. ते वैरथी पोते दूर छे एटले जागर अने वैर उपरत गुणवाळो वीर बने छे, ते कर्म शत्रुने दूर करवानी शक्तिवाळो छे तेवा वीरने उद्देशीने गुरु कहे छे हे वीर ! तुं उपरना गुण धारण करीने पोताने अ-2 थवा बीजाने संसारना दुःखथी अथवा दुःखना कारणरुप कर्मथी बचीश अने बचावीश. अने उपरना उत्तम गुणोथी रहित प्रमादी जीव संसारना चक्रमां अने दुःखना प्रवाहमां संग करीने उंघतो रहीने ते शुं मेळवे छे ते कहे छे.
जरा अने मृत्यु ए बेने वश थइने ते पाणी निरंतर महा मोहथी मूढ बनेलो स्वर्ग अने मोक्ष आपनार धर्मने जाणतो नथी अने संसारमा जीवने एवं कोइ पण स्थानज नथी के ज्यां जरा मृत्यु न होय.
प्रश्नः-देवताओने जरा (बूढापो) नथी..
उत्तर-देवताओने पण त्यांथी च्यववाना छ महिना पहेलां उत्तम लेश्या वळ सुख प्रभुत्व अने सुंदर वर्णनी हानि थाय छेज, तेथी तेमने पण जरानो सद्भाव छे, कयुं छे के.
देवा णं भंते ! सो समवण्णा ? नो इणटे समठे, सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ गोयमा देवा दुविहा-पुत्वोववणग्गा य पच्छोववणग्गा य तत्थ णं जे ते पुवोवरणग्गा तेणं अविसुद्धवपणयरा, जे णं पच्छोववणग्गा ते णं विसुद्धवण्णयरा
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