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सूत्रम्
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8 तथा कषाय विगेरेने जीतनारा मोक्षाभिलाषीसाधुने कोइ वखते अनुकुळ के प्रतिकुळ परिपह आवे छे,ते वखते मन निर्मळ रा
खीने तेने समभावे सहन करवा. ए प्रमाणे, संबंधथी आ त्रीजुं अध्ययन बताव्युं छे. एना उपक्रम विगेरे चार अनुयोगद्वार थाय छे.
तेमांउपक्रममा अर्थाधिकार चे प्रकारे छे, तेमां अध्ययननो अर्थाधिकार पूर्वे कह्यो छे. अने उद्देशनो अर्थाधिकार हवे नियुक्तिकार बतावे छे. ॥४२२॥ पढमे सुत्ता अस्संजयत्ति.' ? विइए दुह अणुहवंति । तइए न हु दुक्खणं, अकरण याए व समणुत्ति' १९८ ॥४२२।
उद्देसंमि चउत्थे, अहिगारो उवमणं कसायाणं। पाव विरईओ विउणो, उ संजमो एत्थ मुक्खुति ॥१९९॥ 2
(१) पहेला उद्देशामां का छे के-जे भावनिद्रामा सुता छे, ते सारा विवेकथी रहित छे. प्रश्न:-ते क्या छे ? उत्तरः-जे गृहस्थो छे ते. ते भावथी सुतेलाओना दोष कहे छे. तथा जे भावथी जागता छे, तेना गुणोने बतावे छे. मूत्र 'जरामच्चु विगेरे. (२) बीजा उद्देशामा जे गृहस्थो भावनिद्रामा सुतेला छे, तेपने थतां दुःखो बतावे छे. ते सूत्र 'कामेसु गिद्धा'
त्रीजामां का छे केः-फक्त दुःख सहन करवाथीन साधु न कहेवाय पण जो, संयमअनुष्ठान करे; तो ते साधु छे नहीं 8 ते साधु नहीं. ते सूत्र कहे छे. 'सहिए दुक्ख'
द चोथा उद्देशामां कषायोनुं वमन करवु. एटले न करवा; अने बाकीनां पापो छोडवां. ते पंडित साधुन संयम छे, अने प्रथम - क्रोधथी लइने लोभ सुधी कपायो दुर थवाथी क्षपकश्रेणिना क्रमथी केवळज्ञान प्राप्त थाय छे, अने अघातिकर्म दूर थवाथी आठे