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आचा०
॥२२९॥
॥ श्रीजिनाय नमः ॥
॥ श्रीआचारांगसूत्रम् ॥
(मूळ अने शीलांकाचायें रचेली टीकानुं भाषान्तर ) ( भाग बीजो )
छपावी प्रसिद्ध करनार - पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगर )
नमः श्रीवर्द्धमानाय, वर्द्धमानाय पर्ययैः । उक्ताचार प्रपञ्चाय, निष्प्रपञ्चायतायिने ॥ १ ॥
श्री वर्धमान स्वामीने नमस्कार थाओ जेओ पर्याय (आत्माना उत्तम गुणो ) वडे निरंतर वघेला छे. तथा आचारनो विस्तार जेमणे को छे तथा संसारी प्रपंच ( रागद्वेष) थी सर्वथा मुक्त छे अने सर्व जीवोना रक्षक छे. शस्त्रपरिज्ञाविवरणमति गहनमितीव किल वृतं पूज्यैः । श्रीगन्धहस्तिमित्रैर्विवृणोमि ततोऽहमवशिष्टम् ॥ २ ॥
सूत्र
॥२२१